देहरादून। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में प्रत्येक वर्ष आयोजित होने वाले ऐतिहासिक झंडा मेले का विधिविधान से शुभारंभ हो गया। नगर के सहारनुपर चौक झंडा बाजार स्थित दरबार साहिब का ऐतिहासिक झंडा मेला सोमवार से शुरू हुआ। मेले का सबसे बड़ा आकर्षण 95 फीट के झंडे जी का आरोहण रहा। जिसमें लाखों श्रद्धालु मौजूद रहे। प्रेम, सद्भावना, भाईचारा, मानवता, श्रद्धा व आस्था के प्रतीक श्री झंडा जी मेला में शामिल होने के लिए देश-विदेश से संगत यहां पहुंची। श्री दरबार साहिब के सज्जादानशीन श्री महंत देवेंद्र दास महाराज लाखों संगतों की मौजूदगी में श्री झंडे जी का आरोहण किया गया।
श्री दरबार साहिब, श्री झंडा मेला प्रबंधन समिति की ओर से रविवार शाम को सभी तैयारियों को अंतिम रूप दिया गया। आरोहण स्थल पर सभी आवश्यक तैयारियों को पूरा किया गया। श्री झंडा मेला प्रबंध समिति के व्यवस्थापक केसी जुयाल ने बताया कि सुबह आठ बजे श्री झंडे जी को उतारा गया। सेवकों द्वारा दूध, दही, घी, मक्खन, गंगाजल और पंचगव्यों से नए श्री झंडे जी को स्नान कराया गया। दस बजे से श्री झंडे जी पर गिलाफ चढ़ाने का कार्य शुरू किया गया। दोपहर तीन बजे से पांच बजे के बीच श्री झंडे जी का विधिवत आरोहण किया गया।
श्री गुरु राम राय दरबार साहिब के सज्जादानशीन श्रीमहंत देवेंद्र दास जी महाराज ने श्री झंडा जी मेला की पूर्व संध्या पर संगतों को गुरुमंत्र दिया। गुरु मंत्र पाकर संगत धन्य-धन्य हो गई। संगत ने गुरुमंत्र को आत्मसात करते हुए श्री झंडा साहिब और श्री गुरु महाराज जी का आशीर्वाद लिया। महाराज ने गुरु महिमा के महत्व को समझाया। उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति गुरु के बताए मार्ग पर चलता है, उसे पृथ्वी पर ही स्वर्ग की अनुभूति मिल जाती है। उन्होंने सामाजिक कुरितियों जैसे कन्या भ्रूण हत्या, नशा, दहेज प्रथा, पर्यावरण जल संरक्षण के लिए जागरूक किया।
श्री महंत देवेंद्र दास महाराज ने संगत को संबोधित करते हुए कहा कि लोकतंत्र की मजबूती के लिए सभी मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करें। जिससे एक स्थिर व सशक्त सरकार बन सके। महाराज ने कहा कि मेले हमारे देश की विरासत व धरोहर हैं। मेलों में देश विदेश के लोग एकसाथ एकजुट होकर अपनी कला, संस्कृति व संस्कारों का आदान प्रदान करते हैं। मेले के व्यवस्थापक केसी जुयाल ने जानकारी दी कि श्री झंडे जी मेले की परंपरा के अनुसार श्री झंडे जी आरोहण से पूर्व रविवार शाम के समय पूरब की संगत को पगड़ी, ताबीज व प्रसाद वितरित किया गया। इसके साथ ही पूरब की संगत की विदाई की गई।