जन आंदोलन से ही बचेंगी नदियां : मेधा पाटकर

हरिद्वार। गंगा और तमाम नदियों के प्रदूषण के खिलाफ फिर से नए आंदोलन की सुगबुगाहट हो रही है। मातृ सदन में अनशन कर रहे आत्मबोधानंद के समर्थन में सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर की हरिद्वार में मौजूदगी कहीं-न-कहीं इसी बात की ओर इशारा कर रही है। साथ ही पाटेकर ने ये भी साफ कर दिया कि जनांदोलन से ही गंगा-नर्मदा समेत अन्य नदियां बच पाएंगी।

गंगा रक्षा के लिए जीवन त्यागने वाले स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद की मांगों को लेकर हरिद्वार स्थित मातृसदन में ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद अनशनरत हैं। उन्हीं के समर्थन में आयोजित जन संवाद कार्यक्रम में नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रणेता मेधा पाटकर यहां पहुंची। इस दौरान उन्होंने कहा कि गंगा और नर्मदा समेत अन्य नदियों के संरक्षण और संवर्धन के लिए इनसे जुड़े संगठनों के एकजुट होने की जरूरत है। इसके लिए सोशल मीडिया पर प्रसार के अलावा सभाएं, गोष्ठियां और सामूहिक उपवास, धरना-प्रदर्शन, पदयात्रा, हस्ताक्षर अभियान जैसी रणनीति भी बनानी होगी। उन्होंने आरोप लगाया कि इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर केंद्र सरकार न केवल संवेदनहीन, बल्कि संवादहीन भी बनी हुई है।

मेधा पाटकर ने कहा कि मातृसदन के संत मानव धर्म के संवाहक हैं। इसलिए गंगा यात्रा निकालकर स्वामी सानंद की मौत के कारणों को उजागर किया जाएगा। उन्होंने गंगा एक्ट के क्रियान्वयन को हस्ताक्षर अभियान चलाने की जरूरत पर भी जोर दिया। कहा कि इसके लिए दिल्ली में एक मंच खड़ा किया जाना चाहिए, जो सरकार को भी एक्ट के प्रारूप पर चर्चा के लिए बुलाए।

पाटकर ने कहा, गंगा और नर्मदा की स्थिति कमोबेश एक जैसी है। नर्मदा नदी पर भी 30 बड़े और 135 छोटे बांध बने हैं। लेकिन, केंद्र सरकार नदियों के संरक्षण को लेकर गंभीर नहीं लग रही है। उन्होंने बताया कि वे खुद भी नर्मदा बचाने के लिए कई आंदोलन कर चुकी हैं, लेकिन आज तक अपेक्षित परिणाम सामने नहीं आए। 17 जनवरी को मध्यप्रदेश में ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद के समर्थन में उन्होंने धरना भी दिया था।

 
मेधा पाटकर का कहना है कि केंद्र सरकार के गंगा बिलों से नदियों का भला नहीं होनो वाला है। क्योंकि इन बिलों में निजीकरण और परियोजनाकरण को ज्यादा थोपा जा रहा है। जिससे न तो गंगा निर्मल हो सकती है और न अविरल ही। गंगा की विशेषता धार्मिक ही नहीं, प्राकृतिक और वैज्ञानिक भी है। इसलिए गंगा को बचाए रखना सिर्फ मातृसदन का ही काम नहीं है, बल्कि यह सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है।
मेधा पाटकर ने कड़े शब्दों में कहा कि गंगा के लिए तपस्यारत संतों से संवाद नहीं किया जा रहा है। ये सरकार की संवेदनहीनता नहीं तो फिर क्या है। इससे ये भी साबित हो जाता है कि पहले निगमानंद और अब सानंद की हत्या हुई है। उनका ये भी कहना है कि आत्मबोधानंद जैसा युवा संत गंगा रक्षा को तप कर रहा है, जबकि संत गोपालदास गायब हैं। इसका जवाब केंद्र सरकार को देना चाहिए। उन्हें बताना चाहिए कि आखिर संत गोपालदास कहां हैं और आत्मबोधानंद को क्यों तपस्या करनी पड़ रही है।
सामाजिक कार्यकर्ता पाटकर का कहना है कि परियोजनाएं केवल तकनीकी चुनौती देती हैं और लाभों का जाल भी फैलाती है, लेकिन इनसे गंगा की अविरलता और निर्मलता नहीं बनती है। उन्होंने ये भी कहा कि मध्य प्रदेश की नई सरकार को नर्मदा बचाने के लिए कार्य करना चाहिए, क्योंकि नर्मदा घाटी के लोगों ने इसी की मांग पर सरकार बनाई है। अगर सरकार ऐसा नहीं करती है तो न नर्मदा बचेगी और न घाटी ही। उन्होंने कहा कि जो लोग गंगा पर हजारों करोड़ रुपये खर्च करने की बात कह रहे हैं, वह लोग न तो गंगा को निर्मल बना पाए हैं और न अविरल ही बहने दे रहे।

इस मौके पर गंगा कमेटी के अध्यक्ष रवि चोपड़ा ने गंगा एक्ट के विभिन्न प्रारूपों की जानकारी दी। उन्होंने गंगा प्रेमियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं से अपील की कि वह 2012 में गंगा महासभा की ओर से प्रस्तावित प्रारूप राष्ट्र नदी गंगा (संरक्षण एवं प्रबंधन) अधिनियम समेत अन्य प्रारूपों का अध्ययन करें। साथ ही लोगों को साथ लेकर क्षेत्रीय सांसद को भी जनाकांक्षाओं से अवगत कराएं।

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