अपनी ही पार्टी की सरकार से नाखुश हैं कोश्यारी

देहरादून। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री व सांसद भगत सिंह कोश्यारी के बारे में यह चर्चा गरम है कि वे अपनी ही पार्टी की सरकार से नाखुश हैं। हाल ही में केंद्रीय नेताओं की मौजूदगी में हुई बैठक में कोश्यारी के तल्ख तेवर को लेकर सोशल मीडिया पर तमाम खबरें तैर रहीं हैं। उनकी नाराजगी उत्तराखंड की सियासत मेें इस लिहाज से अहम मानी जाती है कि जब-जब वे नाराज हुए सियासी भूकंप आए।

उनकी नाराजगी को भांपने की कोशिश मेें एक पत्रकार ने उनसे मजाकिया लहजे में सवाल किया कि इधर कुछ महीनों से उत्तराखंड में दो-चार रिक्टर स्केल वाले भूकंप दर्ज किए जा रहे हैं, क्या ये आपकी नाराजगी का असर है? इस पर वे बोले, गुस्सा किस पर हूं? मुझे गुस्सा ही नहीं आता, फिर भूकंप की क्या बात ? उन्होंने जिस लहजे से यह बात कही, वह ऐसा आभास दे गया, मानो कह रहे हों कि बड़े भूकंप में तीव्रता की चर्चा हमेशा तबाही के बाद ही होती है।

कोश्यारी के इस जवाब में क्या निहितार्थ छिपे हैं, ये उनसे बेहतर कोई नहीं जानता। हालांकि सियासी जानकार मानते हैं कि जब-जब कोश्यारी रूठे, तब-तब प्रदेश की भाजपाई सियासत में भूकंप आया।भाजपा की अंतरिम सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी की विदाई से लेकर मेजर जनरल (से.नि.) बीसी खंडूड़ी और डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक की मुख्यमंत्री की कुर्सी खिसकने तक के सियासी भूकंपों के पीछे खांटी सियासतदां कोश्यारी की नाराजगी के किस्से आज भी सियासी बैठकों में बड़े ध्यान से सुने जाते हैं।

भाजपा के ही हलकों में आज भी यह कहा जाता है कि वर्ष 2007 में जब भाजपा जादुई आंकड़े के बेहद करीब पहुंची थी, तब इसमें कोश्यारी समर्थक विधायकों का ज्यादा बड़ा योगदान था, इसलिए जब केंद्रीय नेतृत्व ने सत्ता की कमान बीसी खंडूड़ी के हाथों में दी तो ये खेमा अलगाव का शिकार हो गया। अंदर ही अंदर सुलग रहे उनके असंतोष ने करामात दिखाई और दो साल में खंडूड़ी की कुर्सी डोलने लगी। अंतत: उन्हें सत्ता से विदा होना पड़ा।

हालांकि, उनकी विदाई को लोस चुनाव में पांचों सीटों पर भाजपा की हार से जोड़कर देखा गया, लेकिन जानकार इसमें कोश्यारी और उनके समर्थक विधायकों की नाराजगी को ही कमोवेश जिम्मेदार ठहराते हैं। उस वक्त जाते-जाते खंडूड़ी भी निशंक को अपना उत्तराधिकारी बनाकर सियासी दांव खेल गए।

जानकार बताते हैं कि बाद में खंडूड़ी को खुद ही अपना यह दांव उलटा लगा और नाराज चल रहे धुर विरोधी कोश्यारी के नजदीक उन्हें लाने की प्रमुख वजह बना। दो दिग्गजों की नाराजगी के मिश्रण से बारूद तैयार हुआ और विस्फोट से एक बार फिर प्रदेश की राजनीति में भूचाल आया और निशंक की कुर्सी चली गई। इस समय एक बार फिर से प्रदेश में भाजपा की सरकार है और मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कोश्यारी के राजनीतिक शिष्य त्रिवेंद्र सिंह रावत बैठे हैं। लेकिन, सियासी हलकों में यह चर्चा गर्म है कि शिष्य के राजकाज का अंदाज गुरु को नहीं सुहा रहा है।

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