शाहरुख खान को है आत्ममंथन की जरूरत

मुम्बई। अंग्रेजी में एक शब्द है SELF-REALIZATION जिसका मतलब होता है आत्मबोध। अगर आपने सही समय पर अपने अंदर की क्षमता और काबिलियत का सही आंकलन नहीं किया तो फिर आप मुश्किल में पड़ जाएंगे। अभिनेता शाहरुख खान के साथ कुछ ऐसा ही हो रहा है। मैं शाहरुख का कभी फैन नहीं रहा…लेकिन उन्हें पर्दे पर देखना अच्छा लगता था।

शाहरुख की एक चीज जो मुझे सबसे अच्छी लगती है वो है उनकी एनर्जी। लेकिन हाल के वर्षों में उनकी फिल्मों ने न सिर्फ मुझे बल्कि उनके चाहनेवालो को बेहद निराश किया है। मैं बॉक्स ऑफिस पर हुई कमाई या नुकसान की बात नहीं कर रहा ….मैं सिर्फ ये बताने की कोशिश कर रहा हूं कि पिछले 4-5 सालों में शाहरुख ने अपनी अदाकारी के साथ इंसाफ नहीं किया है।

रा वन, फैन, रईस, दिलवाले, डियर जिंदगी, जब हैरी मेट सेजल और अब जीरो…इन सभी फिल्मों को याद कर मैं यही सोचता हूं कि आखिर शाहरुख को हो क्या गया है। हैप्पी न्यू ईयर ने बिजनेस तो कर ली लेकिन क्या वो फिल्म दर्शकों के उम्मीदों पर खरी उतरी…चेन्नई एक्सप्रेस ने भी पैसा कमाया लेकिन अगर क्वालिटी की बात करें तो दोनों फिल्में औसत दर्जे से नीचे की रही।

सवाल उठता है कि आखिर शाहरुख को क्या हो गया है….मुझे लगता है शाहरुख को अपने सुपर स्टारडम से बाहर निकलने की जरूरत है। उन्हेंअब अपनी फिल्मों का सही तरीके से चयन करना चाहिए। अगर शाहरुख आज भी सोच रहे हैं कि वो रोमांस के बादशाह हैं और दर्शक उन्हें इसी रूप मे देखना पसंद करेंगे तो ये उनकी बड़ी भूल है। शाहरुख को ठग्स ऑफ हिंदुस्तान से सबक सीखने की जरूरत है…किसने सोचा था आमिर और अमिताभ की ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिरेगी। सलमान की फिल्म रेस 3 के साथ क्या हुआ ये सभी जानते हैं। अब समय आ गया है इंडस्ट्री के तीनों खान को ये समझना होगा कि अब सिर्फ स्टारडम के दम पर फिल्में नहीं चलेंगी। मुझे लगता है शाहरुख को अब खुद को दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे के राज और कुछ -कुछ होता है के राहुल वाले किरदार से बाहर निकलना होगा।

मुझे लगता है शाहरुख भी वही गलती दुहरा रहे हैं जैसा अमिताभ बच्चन ने किया था। स्टारडम के शिखर पर अमिताभ ने कुछ ऐसी फिल्में की जिसे लेकर वो आज भी अफसोस कर रहे होंगे। गंगा जमुना सरस्वती, तूफान और जादूगर…..याद कीजिए…अमिताभ का बड़ा से बड़ा फैन भी इन फिल्मों को देखकर निराश हो गया था।

वैसे कई लोगों का मानना है कि अमिताभ ने मनमोहन देसाई और प्रकाश मेहरा जैसे निर्देशकों को निराश नहीं करने के लिए ये फिल्में की थीं। लेकिन मुझे नहीं लगता कि शाहरुख के साथ ऐसी कोई बात है। शाहरुख आज इस मुकाम पर हैं जहां वो अपनी मर्जी से फिल्में चुन सकते हैं…बस उन्हें ये समझना होगा कि आज की पीढ़ी क्या देखना पसंद करती है।

आज वही फिल्में दर्शको को भाती हैं जिसमें कंटेट हो….आज कोई फिल्म सुपर स्टार के नाम से नहीं चलता….बधाई हो, बरेली की बर्फी, राजी जैसी फिल्में आज अगर लोगों को पसंद आ रही है तो इसके पीछे वजह यही है कि लोग अब कुछ नया देखना पसंद करते हैं। कुछ इस तरह की फिल्में जो दर्शकों के दिल के करीब हो। आप सात समंदर पार जाकर एक गाने पर भले ही करोड़ों खर्च कर दें….लेकिन फिल्म तभी चलेगी जब उसकी स्टोरी में दम हो।

शाहरुख दूसरे अभिनेताओं से हटकर हैं ये बात उनसे बेहतर कौन जानता है। अपने करियर के शुरूआती दिनों में डर और बाजीगर जैसी फिल्में करना किसी भी अभिनेता के लिए मुश्किल होता लेकिन शाहरुख ने रिस्क लिया और उन्हें कामयाबी मिली। आज शाहरुख को फिर उसी तरीके से सोचने की जरूरत है। उन्हें उन निर्देशको के साथ काम करना चाहिए जो उनके स्टारडम को नहीं उनके किरदार को ध्यान में रखकर काम करे।

आज नवाजुद्दीन सिद्दीकी, राजकुमार राव, आयुष्मान खुराना जैसे अभिनेता अपने अभिनय के दम पर दर्शकों की वाहवाही लूट रहे हैं। किसी के पास लुक नहीं, तो किसी के पास बॉडी नहीं…लेकिन फिर भी ये लोग अपनी अलग पहचान बना चुके हैं। अगर फिल्म की सब्जेक्ट अच्छी है, कहानी और किरदार में दम है तो फिल्म जरूर चलेगी। आज के समय में कोई सुपर स्टार नहीं, कोई बॉलीवुड का शहंशाह नहीं, कोई बादशाह नहीं….फिल्में तभी चलेंगी जब उसमें दम हो।

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