सर्वे ऑफ इंडिया लिडार तकनीक से करेगा बाढ़ पर नियंत्रण
इससे देश में जल संसाधन प्रबंधन संस्थान की क्षमता में भी मजबूती आएगी और सम्बंधित क्षेत्रों की डिजीटल एलीवेशन मॉडल मैप के लिए पचास सेंटीमीटर की अति शुद्धता की ऊंचाई निकाली जा सकेगी। इसके लिए लिडार मैपिंग तकनीक का प्रयोग किया जा रहा है। नमामि गंगे में गंगा नदी में हरिद्वार से बंगाल की खाड़ी तक 45 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र कवर होगा। यूपी की यमुना, घाघरा, गंडक, गोमती, रामगंगा, बेतवा, केन, राप्ती नदी का 71 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र भी कवर किया जाएगा। दोनों सर्वे इस साल जून तक पूरे होंगे। इसी तरह का सर्वे गोवा में भी किया जा रहा है।
सर्वे ऑफ इंडिया नमामि गंगे और राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना के तहत लिडार तकनीक से गंगा में दस-दस और यूपी की नदियों के तटों से 5-5 किलोमीटर तक दायरे का सर्वे होगा। यह कार्य जून तक पूरा हो जाएगा। सर्वे से प्राप्त डाटा देश में बाढ़ नियत्रंण के कार्यों को मजबूती प्रदान करेगा। राष्ट्रीय भू-स्थानिक आंकड़ा केन्द्र सर्वे ऑफ इंडिया हाथीबड़कला निदेशक एसवी सिंह का कहना है कि भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय के तहत जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग की ओर से संचालित इस महत्वाकांक्षी परियोजना का उद्देश्य जल संसाधनों की सूचना, गुणवत्ता व पहुंच में सुधार करना है।
लिडार लाइट डिटेक्शन एंड रेंजिंग तकनीक है। इससे दुर्गम इलाकों में भूतल से सिर्फ एक किलोमीटर की ऊंचाई पर हवाई जहाज या ड्रोन सर्वे का काम किया जाता है। लिडार सिस्टम के लिए लेजर, स्कैनर व जीपीएस का उपयोग किया जाता है। लेजर से अति सूक्ष्म वेबलैंथ से जमीन की ऊंचाई की अतिशुद्ध परिमाप ली जाती है। प्राप्त त्रिआयामी डिजिटल चित्रों से दुर्गम इलाकों में पचास सेंटीमीटर तक सटीकता से ज्योडिक मॉडल, सर्वे ऑफ इंडिया के बैंचमार्क की ऊचांई का उपयोग करते हुए जमीन की बनावट, समुद्र तल से ऊंचाई, पेड़-पौधों के फैलाव और क्षेत्रफल का सही अनुमान लगाया जा सकता है। प्राप्त डाटा के आधार पर राज्य व केन्द्र सरकारें भूस्खलन और बाढ़ नियंत्रण से जुड़े कार्य आसानी से कर सकती हैं।