राज्य आंदोलनकारी भावना पांडे ने शहीद स्मारक पर अर्पित की पुष्पांजलि

देहरादून। आज पूरा उत्तराखंड 22वां राज्य स्थापना दिवस मना रहा है। 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड राज्य देश के 27वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आया। उत्तराखंड को पृथक राज्य के रूप में अस्तित्व में आये 21 वर्ष का समय व्यतीत हो चुका है किन्तु आज भी हमें अपने सपनों का उत्तराखंड नहीं मिल पाया है। ये कहना है उत्तराखंड की राज्य आंदोलनकारी बेटी एवँ जनता कैनिबेट पार्टी की केंद्रीय अध्यक्ष भावना पांडे का।

राज्य आंदोलनकारी भावना पांडे ने मंगलवार को राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर कचहरी परिसर देहरादून में शहीद स्मारक पर पुष्पांजलि अर्पित कर शहीद राज्य आंदोलनकारियों को श्रद्धांजलि दी। इस मौके पर मीडिया को जारी अपने एक बयान में भावना पांडे ने कहा कि अपने बीते 21 सालों के इतिहास में उत्तराखंड ने अनेकों उतार-चढ़ाव देखे हैं। जिस राज्य के गठन के लिए हजारों लोगों ने लाठी डंडे खाए, दर्जनों लोगों ने अपनी शहादत दी व कई परिवार उजड़ गए, उस राज्य में आन्दोलनकारियों और शहीदों के सपने आज भी साकार नहीं हुए हैं। उन्होंने कहा कि राज्य आंदोलनकारियों एवँ अमर शहीदों के सपनों के उत्तराखण्ड को बनाने में राज्य की सरकारों ने कितने सार्थक कदम उठाए और आज उत्तराखण्ड राज्य कहां खड़ा है ये किसी से भी छिपा नहीं है।

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राज्य आंदोलनकारी भावना पांडे ने कहा कि उत्तर प्रदेश से विभाजित होकर उत्तराखंड राज्य बना। राज्य बनाने के पीछे का मकसद यही था कि छोटा प्रदेश होगा। इस छोटे प्रदेश में विकास की गंगा बहेगी। स्थानीय लोग सरकार चलाएंगे। आम जनता की पहुंच सरकार तक होगी। किसी भी समस्या का त्वरित निदान होगा। क्षेत्रीय विकास की अवधारणा साकार होगी। पलायन और बेरोजगारी रुकेगी। युवाओं को अपने घर के नजदीक रोजगार मिलेगा। पहाड़ों पर मूलभूत सुविधाएं पहुंचेगी। स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क, बिजली पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए लोगों को सरकार का मुंह नहीं ताकना पड़ेगा। अपनी सरकार अपने लोगों का दुख-दर्द गहराई से और नजदीकी से समझेगी किन्तु ऐसा हो न सका।

उन्होंने कहा- विकास को लेकर अब तक सरकारों ने कुछ प्रयास भी किए लेकिन बावजूद इसके उत्तराखंड के अभी भी बहुत से ऐसे इलाके हैं जहां पर मूलभूत सुविधाओं को आजतक पहुंचाया नहीं जा सका है। फलस्वरूप पलायन जारी है और गांव के गांव खाली हो रहे हैं। प्रदेशवासियों को राज्य गठन के 21 साल बाद भी स्थाई राजधानी की दरकार है। अभी भी उत्तराखंड को स्थाई राजधानी नहीं मिल पाई है। अब तक की सरकारों ने उत्तराखंड के विकास के लिए काम कम और बातें ज्यादा की हैं, लेकिन बीते 21 साल का एक लंबा वक्त गुजरने के बावजूद आंदोलनकारियों के नजरिये से उत्तराखंड का कोई खास विकास नहीं हुआ है।

आंदोलनकारी भावना पांडे के अनुसार उत्तर प्रदेश के समय में जिस गति से उत्तराखंड चल रहा था लगभग वही रेंगती गति अभी भी जारी है। कांग्रेस और बीजेपी दोनों राष्ट्रीय पार्टियों को जनता ने उत्तराखंड में सरकार चलाने का दायित्व दिया। दोनों ही दलों की सरकारों ने आम जनता के हितों को दरकिनार करते हुए केवल अपने लोगों को फायदा पहुंचाने का काम किया। यही वजह है कि आज भी शहीदों के सपनों का उत्तराखंड नहीं बन पाया है। राज्य गठन के 21 साल बाद भी उत्तराखंड वो छाप नहीं छोड़ पाया जिसके लिए बड़े आंदोलन के बाद उत्तराखण्ड राज्य बना था। उत्तराखंड वासियों और राज्य आंदोलनकारियों को आज भी अपने सपनों के उत्तराखंड का इंतजार है।

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