देवभाषा संस्कृत के संरक्षण व प्रोत्साहन के लिए प्रदेशभर में बनेंगे संस्कृत ग्राम – मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत

देवभाषा संस्कृत के संरक्षण व प्रोत्साहन के लिए प्रदेशभर में बनेंगे संस्कृत ग्राम

युवाओं को संस्कृत से जोड़ना होगा। लेकिन, इससे पहले हर जिले और उसके बाद ब्लॉक स्तर पर संस्कृत गांव विकसित किए जाएंगे। उन्होंने संस्कृत भाषा को बढ़ावा और शोध कार्यों पर विशेष ध्यान देने पर भी जोर दिया। निर्णय हुआ कि संस्कृत के क्षेत्र में अच्छा कार्य करने वालों और पांडुलिपियों के संरक्षण के लिए बजट रखा जाएगा।

देवभाषा संस्कृत के संरक्षण और प्रोत्साहन के लिए सरकार ने बड़ा फैसला लिया है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने जिला और ब्लॉक स्तर पर संस्कृत ग्राम विकसित करने के निर्देश दे दिए हैं। इसके साथ ही, उत्तराखंड संस्कृत अकादमी अब ‘उत्तरांचल संस्कृत संस्थानम’ से जाना जाएगा। मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में हुई संस्कृत अकादमी की बैठक में यह निर्णय हुआ। उन्होंने कहा कि संस्कृति के संरक्षण के लिए संस्कृत को बढ़ावा देना जरूरी है।

डिजिटल लाइब्रेरी बनाई जाएगी। कुम्भ मेले के दौरान संस्कृत में सम्मेलन, गोष्ठियां, प्रशिक्षण और कार्यशालाएं भी होंगी। इस अवसर पर संस्कृत शिक्षा सचिव विनोद रतूड़ी, संस्कृत अकादमी उपाध्यक्ष प्रेमचंद शास्त्री, सदस्य प्रो. देवी प्रसाद शास्त्री, प्रो. पीएन शास्त्री, प्रो. वेदप्रकाश शास्त्री, प्रो. राधेश्याम चतुर्वेदी, डॉ. ओपी भट्ट, प्रो. सुनील कुमार जोशी, भागीरथ शर्मा, सुभाष चंद्र जोशी, सचिव एवं सीईओ (हरिद्वार) डॉ. आनन्द भारद्वाज भी मौजूद रहे।

उत्तराखंड में मौजूदा समय में चमोली, बागेश्वर और हरिद्वार में एक-एक गांव संस्कृत ग्राम के रूप में स्थापित है। संस्कृत अकादमी के सचिव डॉ. आनंद भारद्वाज ने बताया कि संस्कृत ग्रामों में संस्कृत भाषा के जानकारों को ही नियुक्त किया जाता है। वो स्थानीय लोगों को संस्कृत में बोलचाल के लिए प्रोत्साहित करते हैं और उन्हें प्रशिक्षित भी किया जाता है। स्थानीय लोकगीतों का अनुवाद भी संस्कृत में किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि सरकार के निर्देश के बाद अब हर जिले में एक-एक गांव को चिह्नित किया जाएगा।

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