उत्तराखंड की टिहरी झील का जलस्तर घटने से दिखने लगा राजा का महल

उत्तराखंड की टिहरी झील का जलस्तर घटने से दिखने लगा राजा का महल

पुरानी टिहरी खुद में सदियों का इतिहास समेटे हुए है, टिहरी झील का निर्माण हुआ तो पुरानी टिहरी झील के पानी में गुम हो गई, लेकिन टिहरी रियासत की पुरानी निशानियां आज भी यहां देखी जा सकती हैं, जिनसे लोगों का गहरा जुड़ाव है। इन दिनों टिहरी डैम का जलस्तर घटने पर पुरानी टिहरी के अवशेष दिखने लगे हैं।

अपनी प्यारी टिहरी को देख लोगों की आंखें छलछला गईं। स्थानीय लोग भावुक हो गए। पुराने टिहरी शहर को त्रिहरी नाम से जाना जाता था। कहते थे ये वही जगह है जहां ब्रह्मा, विष्णु और महेश स्नान करने आते थे। स्कंद पुराण में भी इसका उल्लेख मिलता है।

कभी गढ़वाल की राजशाही का केंद्र रहा ये ऐतिहासिक शहर अब सिर्फ यादों का हिस्सा है। पुराना शहर अब एशिया की सबसे बड़ी झील की गोद में समा चुका है, लेकिन इससे जुड़ी यादें यहां के लोगों की जिंदगी का अहम हिस्सा थीं और हमेशा रहेंगी।

शहर में टिहरी झील का निर्माण हुआ तो पुरानी टिहरी झील के पानी में कही खो गई। यहां रहने वाले लोग देहरादून और आस-पास के शहरों में जा बसे। ये लोग टिहरी से दूर जरूर हो गए, लेकिन टिहरी को कभी भूले नहीं। आज भी झील में टिहरी रियासत की पुरानी निशानियां मौजूद हैं, जिनसे लोगों का गहरा जुड़ाव है। इन दिनों डैम का जलस्तर कम हो गया है। जिससे पुरानी टिहरी के भवनों के अवशेष नजर आने लगे हैं। अपनी पुरानी टिहरी को देखने के लिए यहां लोगों की भीड़ जुट रही है। लोग यहां पहुंचकर पुराने दिनों की याद ताजा कर रहे हैं। राजमहल के अवशेष और निशानियों को देखकर लोग भाव-विभोर हो रहे हैं। टिहरी शहर की स्थापना 28 दिसंबर साल 1815 में राजा सुदर्शन शाह ने की थी। कहते हैं जब ये शहर बसाया जा रहा था, तब ज्योतिष ने कहा था कि इस शहर की उम्र अल्पायु है।

साल 1965 में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री के.राव ने टिहरी डैम बनाने की घोषणा की। 29 जुलाई 2005 को शहर में पानी भरना शुरू हुआ। जिस वजह से यहां रह रहे 100 परिवारों को शहर छोड़ना पड़ा। 29 अक्टूबर 2005 को टिहरी डैम की टनल-2 बंद की गई।

इसी के साथ पुरानी टिहरी का अस्तित्व खत्म हो गया। 30 जुलाई 2006 में टिहरी डैम से बिजली का उत्पादन होने लगा। पुराना राजदरबार, कौशल राज दरबार, रानी निवास महल, श्री देव सुमन स्मारक, घंटाघर, सेमल तप्पड़, गांधी स्मारक, स्वामी रामतीर्थ समारक समेत कई ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल डैम में डूब चुके हैं, लेकिन जब भी डैम का जलस्तर कम होता है।

ये पानी की सतह पर नजर आने लगते हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि जब भी टिहरी झील का जलस्तर कम होता है, तब पर्यटन विभाग को यहां नाव लगानी चाहिए। ताकि लोग राजमहल, कौशल दरबार या अन्य पुरानी धरोहरों का करीब से दीदार कर सकें।

 

 

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