नैनीताल हाईकोर्ट ने पलटा निचली अदालत का फैसला, उम्रकैद की सजा काट रहे दो आरोपी 25 साल बाद बरी
घटनाक्रम के अनुसार, 15 अगस्त 1996 को मृतक अकरम के भतीजे अफजल ने रुड़की के गंगनहर थाने में चाचा की मौत के बाद एफआईआर दर्ज कराई थी। मुकदमा दर्ज होने पर पुलिस ने छह अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया। निचली अदालत में सुनवाई के दौरान नफीस, इस्लाम, सलीम को गवाहों ने पहचान लिया। इसके अलावा दो अन्य आरोपियों में से एक की मुजफ्फरनगर जेल और दूसरे की रुड़की जेल में 1997 में मौत हो गयी थी। अब्बास को निचली अदालत ने पहले ही रिहा कर दिया।
हाईकोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा काट रहे दो अभियुक्तों को 25 साल बाद बरी कर दिया है। कोर्ट ने इस केस में 2013 से अब तक करीब 35 बार सुनवाई की। याचिकाकर्ताओं ने निचली अदालत के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती देकर उनके खिलाफ दर्ज रिपोर्ट को झूठा बताया था। सुनवाई के बाद कोर्ट ने बीती 15 जून को निर्णय सुरक्षित रख लिया था। मामले में सुनवाई मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खण्डपीठ ने की।
न्यायालय में सुनवाई के बाद एडीजे द्वितीय ने तीनों अभियुक्त नफीस, सलीम और इस्लाम को 2013 में पांच-पांच हजार के जुर्माने के साथ आजीवन कारावास की सजा सुनाई। तीनों अभियुक्तों द्वारा इस आदेश को हाइकोर्ट में चुनौती दी गयी। सुनवाई के दौरान दो अभियुक्तों के अधिवक्ता उनके खिलाफ की गई रिपोर्ट को झूठा साबित करने में सफल हुए। कोर्ट ने अपना निर्णय सुनाते हुए दोनों अभियुक्तों नफीस और सलीम को बरी कर दिया है। तीसरे आरोपी 88 साल के इस्लाम की अपील कोर्ट में विचाराधीन है और वह अभी जमानत पर है। पूर्व में निचली अदालत से बरी अब्बास के खिलाफ सरकार ने हाईकोर्ट में अपील दायर की है। उन पर आरोप है कि उसी ने रुपये देकर अकरम की हत्या कराई है। उक्त अपील भी कोर्ट में विचाराधीन है।