उत्‍तराखंड में बस चली Modi की लहर

 देहरादून: बहुजन समाज पार्टी को प्रदेश की जनता ने एक बार फिर सिरे से नकार दिया। पार्टी की सबसे बड़ी उम्मीद हरिद्वार लोकसभा सीट पर पार्टी प्रत्याशी जमील अहमद चौथे स्थान पर रहे। वहीं, हरिद्वार-ऊधम सिंह नगर में पार्टी प्रत्याशी अख्तर अली तीसरे स्थान पर रहे।

राज्य गठन के बाद से ही उत्तराखंड में मुख्य मुकाबला कांग्रेस व भाजपा के बीच होता रहा है, लेकिन बसपा खुद को प्रदेश की तीसरी बड़ी राजनीतिक ताकत के रूप में स्थापित करने में सफल अवश्य रही। यह बात अलग है कि शुरुआती चुनावों में शानदार प्रदर्शन करने वाली बसपा का प्रदर्शन अब लगातार गिर रहा है। राज्य गठन के बाद से बसपा के प्रदर्शन पर नजर दौड़ाएं तो यह पार्टी तीसरी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के रूप में उभरी।
2017 के विधानसभा चुनाव में बसपा को केवल 6.98 प्रतिशत मत मिले और उसकी झोली खाली रही। अहम यह कि बसपा ने 2017 से पहले जो भी सीटें जीतीं वे मैदानी जिलों में ही थीं। वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने फिर हरिद्वार लोकसभा सीट के अंतर्गत दो विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की। ऐसे में पार्टी को इस लोकसभा चुनाव में काफी उम्मीदें थी। स्थिति यह बनी की जिन दो विधानसभा सीटों से बसपा के विधायक जीते थे, वहां भी बसपा प्रत्याशी इस बार तीसरे नंबर पर रहे।

प्रदेश में नहीं चला आइएनडीआइ गठबंधन

कांग्रेस प्रत्याशियों के पक्ष में सक्रिय नहीं नजर आए गठबंधन में शामिल दल राज्य ब्यूरो, जागरण, देहरादून: लोकसभा चुनाव में जनता ने आइएनडीआइ गठबंधन को पूरी तरह नकार दिया। इस बार समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी और वामदलों के सहयोग के बावजूद कांग्रेस के सभी प्रत्याशी चुनाव हार गए।

विशेष यह कि सभी सीटों पर हरिद्वार संसदीय सीट को छोड़ हार-जीत का अंतर डेढ़ लाख से अधिक का रहा। प्रदेश में इस वर्ष आइएनडीआइ गठबंधन के अंतर्गत कांग्रेस को पांचों सीटें मिली थी। चुनाव में प्रचार के लिए आइएनडीआइ गठबंधन के लिए एक समन्वय समिति बनाई गई थी। इस समन्वय समिति में कांग्रेस के साथ ही आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी व वाम दलों के वरिष्ठ नेता शामिल थे।

कांग्रेस को उम्मीद थी कि 2022 के विधानसभा चुनाव में आप को मिलने वाले 3.3 प्रतिशत और सपा व वाम दलों को मिलने वाले लगभग 1.5 प्रतिशत मत भी उनके पक्ष में जाएंगे। यही कारण रहा कि समन्वय समिति में गठबंधन के सहयोग दलों को अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में कांग्रेस प्रत्याशियों के लिए प्रचार करने का जिम्मा सौंपा गया। शुरुआती दौर में तो समन्वय समिति की बैठकों का दौर चला लेकिन धीरे-धीरे यह कम हो गया।

हरिद्वार संसदीय सीट पर जरूर कुछ जनसभाओं में सपा व वामदल के नेताओं की उपस्थिति दर्ज की गई। अन्य सीटों पर आप, सपा व वामदल की भूमिका बैठकों से बाहर नजर नहीं आई। समग्र रूप से देखा जाए तो गठबंधन के रूप में अन्य दलों की सक्रियता बहुत ही कम रही। इसका सीधा लाभ भाजपा प्रत्याशियों को मिला। कांग्रेस प्रत्याशियों को जो भी मत मिले, वे पार्टी कैडर और अपनी मेहनत के बल पर ही हासिल हुए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *