इस वजह से गाड़ियों की ब्रिकी पर लगा ब्रेक

नई दिल्ली। देश में बढ़ती आर्थिक मंदी की खबरों के बीच अब रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने लगातार चौथी बार रेपो रेट घटा दिया है। इसे 0.35 फीसदी घटाकर 5.40 प्रतिशत पर ला दिया गया। हालांकि गवर्नर शक्तिकांत दास ने संकेत दिए हैं कि आने वाले समय में इसे और भी घटाया जा सकता है। रिजर्व बैंक का मानना है कि कुछ सेक्टरों में स्लोडाउन का साया गहराता जा रहा है। जिसको देखते हुए चालू वित्त वर्ष के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) ग्रोथ का अनुमान 7 से घटाकर 6.9 फीसदी कर दिया है। इतना ही नहीं ऑटो सेक्टर में आ रही गिरावट की वजह से जीडीपी की वैश्विक रैंकिंग में भारतीय अर्थव्यवस्था पांचवें पायदान से फिसलकर सातवें स्थान पर आ गई है। जिसकी वजह से विदेशी निवेशक भारतीय बाजारों से अपना पैसा निकलने में लगे हुए हैं।

जिन सेक्टरों में स्लोडाउन की बात की जा रही है उनमें ऑटोमोबाइल सेक्टर प्रमुख है, जहां पर व्यापार लगातार गिरता जा रहा है। इसे आप इस तरीके से भी देख सकते हैं कि मोदी कार्यकाल-2 में जब से इलेक्ट्रिक वाहनों को तवज्जो दी गई है यानि की इलेक्ट्रिक वाहनों की खरीददारी पर सरकार डेढ़ लाख रुपए की अतिरिक्त टैक्स छूट मुहैया कराने वाली है जिसके बाद से यह सेक्टर और भी ज्यादा धीमा हो गया है।

हमेशा से ऐसा माना जाता रहा है कि अगर मारुति की ब्रिकी बढ़ रही है तो हमारी अर्थव्यवस्था अच्छी चल रही है लेकिन अगर मारुति का व्यापार अगर गिरा तो अर्थव्यवस्था बुरी चल रही है। कुछ विशेषज्ञ तो इसे दिशासूचक यंत्र की तरह देखते हैं। सिर्फ हम मारुति पर फोकस करें तो जुलाई के महीने में इसकी बिक्री में करीब 36 फीसदी की गिरावट देखी गई है। अगर महिंद्रा की तरफ नजर दौड़ाएं तो वहां पर 12 फीसदी की गिरावट देखी गई। ऑटोमोबाइल सेक्टर की हर कंपनियों में करीब 10-20 फीसदी की गिरावट देखी गई है।

इन गिरावटों के दौर के बीच खबरें ऐसी भी थीं कि पूरे हिन्दुस्तान से करीब 280 कार डीलरशिप बंद हो गई है। जिसका मतलब है कि तीन हजार के करीब नौकरियां छिन चुकी हैं। अगर मारुति के उत्पादन में कमी की बात की जाए तो जो आंकड़े सामने आए हैं वो चौंका देने वाले हैं। जुलाई महीने में उत्पादन में 25.15 प्रतिशत की गिरावट हुई है। यह लगातार छठवां महीना है जब मारुति ने अपना उत्पादन घटाया है।

आंकड़ों पर ध्यान दें तो साफ पता चलता है कि मंदी आई है। मारुति सुजुकी इंडिया ने बंबई शेयर बाजार को जानकारी दी कि उसने जुलाई 2019 में 1,33,625 वाहनों का उत्पादन किया है। जबकि एक साल पहले इसी महीने में कंपनी ने 1,78,533 इकाइयों का उत्पादन किया था। ये ऑटोमोबाइल सेक्टर के लिए चिंता की बात है।
सामने आ रहे आंकड़ें बताते हैं कि वाहनों की खरीदारी कम होती जा रही है। जिसकी वजह से कंपनियों को उत्पादन में कमी करनी पड़ रही है और इसका असर रोजगार पर भी पड़ रहा है। ऑटोसेक्टर के संगठन सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चर्स के अनुसार मौजूदा वक्त में ऑटो सेक्टर में 10 लाख नौकरियों में संकट पैदा हो गया है और अगर स्थिति न सुधरी तो यह संख्या और भी ज्यादा बढ़ सकती हैं।

गिरते मॉर्केट की वजह क्या?
GST की मार: मोदी कार्यकाल-2 का निर्मला सीतारमण ने बजट पेश किया और पर्यावरण की तरफ ध्यान देते हुए उन्होंने इलेक्ट्रिक व्हीकल को आने वाला भविष्य बताया और प्राइवेट की बजाय कमर्शियल इलेक्ट्रिक वाहनों पर सब्सिडी का ऐलान किया। इसके साथ ही इलेक्ट्रिक वाहनों पर जीएसटी भी कम कर दी लेकिन अन्य गाड़ियों पर जीएसटी 28 फीसदी है।

नए इंजनों का इंतजार: मौजूदा समय में बीएस-4 इंजन वाली गाड़ियां दौड़ रही हैं। लेकिन गाड़ी कंपनियों को 1 अप्रैल 2020 तक बीएस-6 इंजन लगाना अनिवार्य होगा। बीएस-6 का इंजन लगाए जाने से डीजल वाहनों से 68 और पेट्रोल वाहनों से 25 फीसदी नाइट्रोजन ऑक्साइड का उल्सर्जन कम होगा। इसीलिए लोग नए इंजन वाली गाड़िया लेने के इंतजार में हैं।

ग्रामीण इलाकों में आई आमदमी में कमी: सबसे चौंका देने वाले आंकड़ें तो वो हैं जो ट्रैक्टर की ब्रिकी में 10 से 12 फीसदी की गिरावट दर्शा रहे हैं। इसके पीछे की वजह किसानों को लग रहा घाटा बताया जा रहा है। क्योंकि रबी की फसल में कमी देखी गई तो खरीफ फसलों की बहुतेरे किसान बुवाई ही नहीं कर पाए। हालांकि सरकार ग्रामीण लोगों की आमदनी को बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास में जुटी हुई है।

इलेक्ट्रिक व्हीकल को दिया जा रहा बढ़ावा: अब भविष्य इलेक्ट्रिक व्हीकल की तरफ देखा जा रहा है। सरकार भी लोगों को इलेक्ट्रिक वाहन लेने के लिए कह रही है। इसी दिशा की ओर अब Tata Motors और Tata Power बढ़ गए हैं। ये दोनों कंपनियां एक साथ मिलकर चार्जिंग स्टेशन लगाने जा रही हैं। कंपनियों द्वारा जारी किए गए बयान से पता चला है कि मुंबई, दिल्ली, पुणे, बेंगलुरू और हेदराबाद में यह कंपनियां 300 चार्जिंग स्टेशनों की स्थापना करेंगी वह भी चालू वित्त वर्ष में… जिसको देखते हुए लोगों ने भी अपना मन इसी दिशा में बना लिया है और वह पेट्रोल-डीजल वाली गाड़ियों की तरफ नहीं भाग रहे हैं।
ऐप आधारित कैब सर्विस: ऐप आधारिक कैब सर्विसेस की वजह से भी मॉर्केट डाउन हुआ है। वजह यह है कि बाजार में ओला, उबर जैसी कैब सर्विसेस ने कम पैसे में लोगों को ज्यादा सुविधाएं मुहैया करा दी है। इतना ही नहीं यह सर्विसेस अब छोटे शहरों में भी शुरू हो गई है। इनकी वजह से नौकरी-पेशा वाले लोगों को आराम तो हुआ ही है क्योंकि उनको अब पार्किंग का पैसा नहीं देना पड़ता।
ऑटो सेक्टर में आई गिरावट को देखते हुए सरकार भी अब ऐक्शन में आ गई है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ऑटो कंपनियों के प्रतिनिधियों के साथ मीटिंग की। सूत्र बताते हैं कि बैठकों में जो सुझाव सामने आए हैं उनको ध्यान में रखते हुए सरकार की तरफ से जल्द ही कई ऐलान किए जाएंगे। ऐसी भी खबरें सामने आ रही हैं कि विदेशी निवेशकों पर लगे सरचार्ज को घटाया जा सकता है।
ऑटो सेक्टर के प्रतिनिधियों का कहना है कि सरकार को निजी निवेश के साथ कंज्यूमर डिमांड को बढ़ाने में जोर देने होगा। साथ ही उत्पादन ग्रोथ को भी बढ़ाना होगा।

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