उत्तराखंड में अव्यवस्थाओं से नाराज आइएएस ने पद छोड़ने की इच्छा जाहिर की

देहरादून: शायद ही किसी विभाग में ऐसा उदाहरण देखने को मिला हो, जिसे आबकारी विभाग ने अंजाम दिया गया है। संयुक्त आयुक्त व उपायुक्त के जिन पदों का सृजन फील्ड के लिए किया गया था, वह अफसर करीब साढ़े तीन साल से मुख्यालय में जमे हैं और अपर आयुक्त का जो पद मुख्यालय के लिए बना है, उन्हें फील्ड में उतारने के फरमान जारी किए गए हैं। शासन स्तर पर लिए गए इस निर्णय से आबकारी आयुक्त आइएएस वी षणमुगम सहमत नहीं थे। इस असंतुष्टि के कुछ दिन बाद ही उन्होंने इस पद को छोड़ने की इच्छा जाहिर कर दी। उन्होंने लिखित रूप से अपनी इच्छा के बारे में कार्मिक विभाग को भी अवगत करा दिया है। आयुक्त की इस ‘इच्छा’ को लेकर विभाग में चर्चा भी हैं।

सितंबर 2014 में संयुक्त आयुक्त के दो पद गढ़वाल व कुमाऊं मंडल के लिए स्वीकृत किए गए थे। इसी तरह मई 2015 में दोनों मंडल के लिए दो उपायुक्त के पद भी सृजित किए गए थे। जिसका सीधा आशय यह था कि जिन अधिकारियों को यह जिम्मेदारी मिले, वह अपने-अपने कार्य क्षेत्र में राजस्व बढ़ाने, शराब तस्करी रोकने, अवैध शराब के खिलाफ कार्रवाई करने, नियमित जांच करने की व्यवस्था में भरपूर योगदान दे सकें।

कागजों में तो यह पद सृजित भी कर दिए गए हैं और अधिकारियों को इसकी जिम्मेदारी भी दे दी गई। यह बात और है कि इन पदों को सृजित करने का मकसद आज तक पूरा नहीं हो पाया। हालांकि, आयुक्त के रूप में वी षणमुगम के चार्ज संभालने के बाद से ही व्यवस्था बदलने लगी थी। उनकी निगाह संयुक्त आयुक्त व उपायुक्त के पद सृजन पर भी पड़ी और इससे पहले कि वह कुछ निर्णय कर पाते, शासन से इससे एक कदम आगे बढ़कर जूनियर अधिकारियों की जगह वरिष्ठतम रैंक के अधिकारियों को फील्ड में उतारने का तानाबाना बुन दिया गया।

आबकारी मंत्री प्रकाश पंत ने कहा कि वी षणमुगम के पास कार्य की अधिकता है, उन्होंने मुझसे ऐसा जिक्र किया है। चूंकि, आबकारी का काम तकनीकी है और षणमुगम के पास दूसरे कार्यों का भी बोझ है। देखा जा रहा है कि इस मामले में क्या बेहतर हो सकता है।

अपर मुख्य सचिव(आबकारी) डॉ. रणवीर सिंह अपर आयुक्त के मुख्यालय के जिन दो पदों को मंडल में उतारने के आदेश किए गए हैं, उन पर पुनर्विचार के लिए आबकारी मंत्री से विचार-विमर्श किया जाएगा। जहां तक बात आबकारी आयुक्त के असंतुष्ट होने के चलते पद छोड़ने की इच्छा जाहिर करने की है, वह बात मुझ तक भी पहुंची थी। इस पर उनसे बात की तो उन्होंने काम की अधिकता के चलते यह निर्णय लेने की बात कही।

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