एफआरआई में आयोजित की गई कार्यशाला

देहरादून। रसायन एवं जैवपूर्वेक्षण प्रभाग, वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआई), देहरादून और सुगंध और सुरस विकास केंद्र (एफएफडीसी), कन्नौज द्वारा संयुक्त रूप से “सुगंधित तेल, परफ्यूमरी और अरोमाथेरेपी” पर 5 दिनों की प्रशिक्षण सह कार्यशाला का आज दिनांक 10 जून, 2019 को शुभारंभ हुआ। भारत के विभिन्न कोनों से आए कुल 43 प्रतिभागी प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग ले रहे हैं। एफआरआई के प्रमंडल कक्ष में प्रशिक्षण सह कार्यशाला का उद्घाटन करते हुए मुख्य अतिथि, डॉ. ए. एस, रावत, निदेशक, एफआरआई, देहरादून ने सुगन्ध उधमियों से आधुनिक ज्ञान और तकनीकी क्षमताओं के द्वारा अपने ज्ञान को परिष्कृत अवं परिमार्जित करने का आह्वान किया। प्राकर्तिक उत्पादों की तरफ जनसामान्य के झुकाव को देखते हुए सुगन्ध के क्षेत्र में उन्होंने वनों अवं वन
उत्पादों की महत्ता पर प्रकाश डाला । MSME सेक्टर में सुगंध उद्योगों के महत्व को रेखांकित करते हुए उन्होंने योग्य एवं पर्शिक्षित कार्मिकों की उपलबधता को बढ़ाने हेतु इस प्रकार के प्रशिक्षण कार्यक्रमों की आवश्यकता पर बल दिया । उन्होंने सुगंध उद्यमियों के हित में प्रशिक्षण आयोजित करने के लिए रसायन एवं जैवपूर्वेक्षण प्रभाग, एफआरआई और एफएफडीसी के सामूहिक प्रयासों की सराहना की और भारत में सुगंध और स्वाद उद्योग की आवश्यकता को पूरा करने में इसके महत्व पर बल दिया।

सम्मानित अतिथि के रूप में प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुए, श्री रोहित सेठ, अध्यक्ष, सुगंध व्यापार संघ एवं पूर्व अध्यक्ष, फफाई ने सुगंध उधामों की चनौतियों एवं संभावनाओं का उल्लेख किया ।. सुगन्ध उत्पादों के वैश्विक बाज़ार के बारें में बताते हुए उन्होंने सुगन्धित तेलों और सम्बंधित उत्पादों का प्रमाणीकरण भारतीय परिप्रेक्ष्य में किया जाने पर बल दिया। सुगन्ध विकास के क्षेत्र में अनुसनधान और विकास के साथ साथ पारंपरिक ज्ञान और प्रथाओं को भी यथोचित महत्व दिए जाने पर बल दिया. श्री ऐ. पी. सिंह, ,उप निदेशक, एफएफडीसी, कन्नौज ने एफएफडीसी की गतिविधियों के बारे में उल्लेख किया और प्रशिक्षण सह कार्यशाला के तकनीकी सत्रों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया। श्री सिंह ने सभा को सूचित किया कि प्रशिक्षण के पाठ्यक्रम प्रतिभागियों के विविध समूह की अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए डिजाइन किए गए हैं।

कार्यक्रम का प्रारम्भ दीप प्रज्वलन के साथ शुरू हुआ जिसके बाद डॉ विनीत कुमार, प्रमुख रसायन एवं जैवपूर्वेक्षण प्रभाग ने अथितियों एवं प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए सुगंधित तेलों के क्षेत्र में प्रभाग के प्रभावशाली अनुसंधान कार्यों के बारे में बात की , जिसके फलस्वरूप भारत में सुगंधित तेल उद्योगों के विकास के लिए मार्ग प्रशस्त हुआ । डॉ। प्रदीप शर्मा, वैज्ञानिक-बी और प्रशिक्षण कार्यक्रम के संयोजक द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। उद्घाटन समारोह में रसायन एवं जैवपूर्वेक्षण प्रभाग के वैज्ञानिक डॉ ऐ. के. पाण्डेय, डॉ वीके वार्ष्नेय, डॉ वाई.सी. त्रिपाठी; ग्रुप कोऑर्डिनेटर (रिसर्च), एफआरआई के विभिन्न प्रभागों के प्रमुख, और अन्य अधिकारी और शोध छात्रों ने भाग लिया।

पहले तकनीकी सत्र के दौरान श्री ऐ. पी. सिंह ने सुगंधित तेलों के वैश्विक परिद्रश्य, विविध व्यापारिक एवं रोजगार की स्मभाव्नाओं के बारे में बताया। श्री सीताराम दीक्षित, स्वतंत्र सलाहकार,मुंबई ने सुगंधित तेलों के स्रोतों, महत्व तथा राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक क्षमताओं का जिक्र किया। सुगंध एवं अरोमाथेरेपी के बारे में बताते हुए उन्होंने आयुर्वेद की पूर्व एवं वर्तमान पद्धतियों में सुगन्ध के प्रयोग का उल्लेख किया तथा स्वास्थ्य एवं व्यापर की दृष्टि से भविष्य की संभावनाओं को रेखांकित किया। तदुपरान्त डॉ शैलेश पांडे, वन पैथोलॉजिस्ट ने सुगंध के गैर-पारंपरिक एवं नवीन स्रोत के रूप में कवको की महत्ता पर व्याख्यान दिया। डॉ प्रदीप शर्मा ने सुगंधित तेलों के निष्कर्षण तकनीकों के बारे में जानकारी दी। प्रशिक्षण सह कार्यशाला 14 जून 201 तक जारी रहेगी और वैज्ञानिक ज्ञान, कौशल और उद्यमिता की प्रगति के लिए सुगनाधित तेलों के प्रसंस्करण, गुणवत्ता मूल्यांकन और चिकित्सीय लाभों और उनके अनुप्रयोगों को सुगंध और अरोमाथेरेपी में मौलिक और उपयोगी पहलुओं के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करेगी।

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