उत्तराखंड में प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए ‘ई-व्हीकल पॉलिसी’ होगी लागू

उत्तराखंड में प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए ‘ई-व्हीकल पॉलिसी’ होगी लागू

विभाग ने शुरुआती खाका तैयार कर लिया है। सूत्रों के अनुसार, निर्माण लागत ज्यादा होने से ई-व्हीकल पर सब्सिडी और चार्जिंग स्टेशन-सर्विस सेंटर की स्थापना के लिए आकर्षक सब्सिडी देने पर भी विचार किया जा रहा है।

डीजल-पेट्रोल चालित वाहनों से बढ़ते प्रदूषण को देख उत्तराखंड सरकार भी ई-वाहनों की ओर बढ़ने जा रही है। ई-व्हीकल पॉलिसी तैयार करने की जिम्मेदारी परिवहन विभाग को दे दी गई है।

सूत्रों के अनुसार, परिवहन विभाग का ड्राफ्ट तैयार होने के बाद इसे कैबिनेट बैठक में लाया जाएगा। उपायुक्त-परिवहन एसके सिंह ने बताया कि ई-व्हीकल पॉलिसी अभी प्रारंभिक स्थिति में है। मुख्यालय स्तर से इस विषय पर मंथन जारी है।

उन्होंने कहा कि जल्द इसे अंतिम रूप देकर शासन को सौंप दिया जाएगा। बता दें कि उत्तराखंड में मौजूदा समय में छोटे-बड़े वाहनों की संख्या 25 लाख से भी ज्यादा है। देहरादून, हरिद्वार, यूएसनगर और नैनीताल में प्रदूषण बढ़ता जा रहा है।

-ई-व्हीकल की शुरुआत चरणबद्ध तरीके से सरकारी विभागों से की जाए
-10 प्रतिशत से शुरू करते हुए इसे राज्य में धीरे-धीरे 50 फीसदी तक लाया जाए
-ई-व्हीकल खरीदने पर केंद्र एवं राज्य स्तर से सब्सिडी का प्रावधान हो
-सुचारु संचालन के लिए चार्जिंग स्टेशन एवं रिपेयर सेंटर बनाने में भी रियायत मिले
-प्रथम चरण में राज्य के मैदानी जिलों को किया जाएगा केंद्रित
-ई-वाहनों को कुछ समय के लिए विभिन्न प्रकार के परिवहन टैक्स से भी छूट

सूत्रों के अनुसार, उत्तराखंड में सालाना 40 करोड़ लीटर पेट्रोल और 90 करोड़ लीटर डीजल की खपत होती है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, सरकार को इससे सालाना एक हजार 400 करोड़ से ज्यादा राजस्व मिलता है।

राजस्व का बड़ा स्रोत होने के साथ यह प्रदूषण का भी बड़ा कारक है। बढ़ते प्रदूषण को देख केंद्र सरकार भी डीजल-पेट्रोल की बजाय बिजली-सीएनजी चालित वाहनों को प्रोत्साहित कर रही है। ई-व्हीकल से जहां वायु प्रदूषण नियंत्रित होगा, वहीं ध्वनि प्रदूषण पर काफी हद तक राहत संभव है।

ई-व्हीकल की राह में सबसे बड़ी अड़चन उसकी निर्माण लागत महंगी होना है। कुछ समय पहले रोडवेज ने इस दिशा में पहल शुरू की थी। मसूरी और नैनीताल में ट्रायल के रूप में दो बस सेवाएं भी चलाईं। लेकिन बाद में रोडवेज को ई-बस खरीदने का प्रस्ताव ही टालना पड़ गया।

सूत्रों के अनुसार, एक बस की कीमत एक करोड़ रुपये तक बैठ रही थी। विशेषज्ञों का कहना है कि ई व्हीकल की कीमत जरूर ज्यादा होती है, लेकिन उसे चलाने की लागत बहुत कम होती है।

खासकर, जब बात पर्यावरण सुरक्षा की हो तो यह और भी सस्ता हो जाता है। सरकारी स्तर पर सब्सिडी से इन वाहनों की कीमत को नियंत्रित रखा जा सकता है।

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