नन्हें दीपक

 

ललित शौर्य
ललित शौर्य

ओ नन्हें दीपक तुझ पर

लाखों सूरज वारे हैं
तेरी टिम .टिम लौ के आगे
अग्नि पुंज भी हारे हैं

शेष समर तुझको साथी
यूँ ही जलते जाना है
घोर तिमिर रजनी में
दिनकर बन उग आना है

इस नन्ही लौ ने
शत्रु अनेकों मारे हैं

दल बादल छा जाएँ नभ में
संकल्प कभी ना छूटे तेरा
सामर्थ्यवान की शक्ति सदा ही
तोड़े महा विपति का घेरा

घोर तमस की रातों में
बीज उजास के गाड़े हैं

diyaछल प्रपंचों की चौखट पर
चोट सदा ही होती है
रहकर तम् के अधीन
मर्यादा अक्सर रोती है

तेरे नन्हें हाथों ने
पत्र अमावस के फाड़े हैं

मोल तेरा जाना जग ने
ख्याति सदा ही पाई है
ये तो प्यारे दीपक तेरे
पुरुषार्थ की कमाई है

हमसब अन्धकार से लड़ने
खड़े तेरे सहारे हैं

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