उत्तराखंड में लगेगा देश का पहला गरम पानी के स्रोत से बिजली बनाने का प्लांट

उत्तराखंड में लगेगा देश का पहला गरम पानी के स्रोत से बिजली बनाने का प्लांट

वाडिया ने उत्तर पश्चिमी हिमालयी में मौजूद गरम पानी के स्रोतों का रिजरवायर टेम्प्रेचर आंकलन डिजोल्व सिलिका जियो थर्मोमीटर के आधार पर किया। पाया कि इनमें अगर पावर प्लांट लगाए जाएं तो 10 हजार मेगावाट बिजली उत्पादित हो सकती है। वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक डा.समीर के तिवारी का यह शोध अंर्तराष्ट्रीय जर्नल हिमालयन जियोलॉजी में छपा है। वाडिया को तपोवन, जोशीमठ में सबसे अधिक 145 डिग्री के रिजरवायर टेम्प्रेचर 450 मीटर गहरे बोर होल के बाद मिला है। जहां पहले वायनरी पावर प्लांट यानी गरम पानी के स्रोत से एनर्जी टैप कर बिजली बनाने के लिए उत्तराखंड की ही कंपनी जयदेव एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड से करार किया गया है।

वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी ने हिमालयी क्षेत्र के गरम पानी के स्रोतों (हॉट स्प्रिंग) को टैप कर बिजली पाने की दिशा सफलता प्राप्त की है। वाडिया ने जोशीमठ के पास तपोवन में गर्म पानी के स्रोत से पांच किलोवाट बिजली उत्पादन के लिए एक निजी कंपनी से करार किया है। यह देश में पहला वायनरी पावर प्लांट होगा, जिसमें हॉट स्प्रिंग से बिजली का उत्पादन हो सकेगा।

हिमालय में गर्म पानी के स्रोत

महादीपों को आपस में जोड़ने वाली संरचना रिंग ऑफ फायर कहलाती है। भारत में यह सरंचना हिमालय से होकर गुजरती है। इससे ही पृथ्वी की भीतरी सतह की ऊष्मा लावा गर्म पानी के रुप में बाहर निकलती रहती है। हिमालय में इन्ही दरारों के आसपास जियो थर्मल स्प्रिंग की एक्टीविटी होती है। स्रोत से सिलिका कैमिकल पानी के साथ बाहर आता है। इससे ही जमीन के नीचे की गर्मी का अध्ययन किया जाता है।

हिमालय में 340 गर्म पानी के स्रोत

जियोलॉजीकल सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा 2001 में जारी एटलस के मुताबिक उत्तर पश्चिम हिमालय में 340 गरम पानी के प्राकृतिक स्रोत हैं। वाडिया उत्तराखंड के 40, हिमाचल 20, जम्मू कश्मीर व लद्दाख 15 का अध्ययन कर चुका है। उत्तराखंड में सबसे गर्म स्रोत चमोली जिले के तपोवन सलधार में है। यहां सतह का तापमान 93 डिग्री सेल्सियस तक है। हिमाचल के मणिकरन में 95, लद्दाख के फूगा में 89, यमनोत्री के सूर्यकुंड में 84, बद्रीनाथ में 56 डिग्री सेल्सियस तापमान है।

देश में सत्तर प्रतिशत बिजली कोयले से बनती है। बीस प्रतिशत बिजली हाइड्रोपावर से बनती है। कोल के इस्तेमाल से बहुत कार्बन उत्सर्जन होता है। जबकि हाइड्रो परियोजना से भी पर्यावरण सम्बंधी नुकसान झेलने पड़ते हैं। गर्म पानी के स्रोत से बिजली बनने से पर्यावरण व कार्बन उत्सर्जन जैसी कोई बाधा नहीं है।
डा.कालाचांद सांई, निदेशक वाडिया भू विज्ञान संस्थान, देहरादून

उपयोगिता

हाइड्रो पावर के मुकाबले सस्ती बिजली होगी
-हाइड्रो की तरह गाद आने या पानी की कमी की दिक्कत नहीं होगी
-पर्यावरण फ्रेंडली
-कार्बन उत्सर्जन नहीं
-नियमित ऊर्जा स्रोत

भारत में पहली बार

न्यूजीलैंड, जापान, आइसलैंड, फिनलैंड, इटली आदि देशों में जियो थर्मल स्प्रिंग के इस्तेमाल से बिजली बनाई जा रही है। भारत में पहली बार यह प्रयास हो रहे हैं। जियो थर्मल तकनीक का प्लांट बनाने में एक आंकलन के अनुसार 1.6 ये 2.0 मिलियन डॉलर प्रति मेगावाट का खर्चा आता है। लेकिन बिजली बनने का खर्चा हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट से चार गुना कम महंगा है। हिमालय के गर्म पानी के स्रोतों के अलावा गोदावरी बेसिन, गुजरात में भी गर्म पानी के स्रोत हैं। कुमाऊं के गोरी गंगा में भी 10 किलोमीटर लम्बा जियोथर्मल फील्ड मौजूद है।

अलकनंदा घाटी-  बद्रीनाथ-तप्तकुंड, खिरोई, भापकुंड, तपोवन-सालधार,  हेलंग, लांगसी, गनोई, बिरही, गौरीकुंड,
भागीरथी घाटी- भुक्की, झाया, गंगनानी, थेरंग, मातली
यमुना घाटी- यमनोत्री-सूर्यकुंड, जानकी चट्टी-खरसाली, बनस, वोजारी, कोटी-मनेप,

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