उत्तराखंड में कोरोना को हुए पूरे एक साल, 15 मार्च को राजधानी देहरादून में मिला था पहला संक्रमित
केवल पांच बेड का आईसीयू वार्ड था। आठ बेड का संदिग्ध एवं 15 बेड का संक्रमित मरीजों का वार्ड तैयार किया गया। 15 मार्च को पहला मरीज प्रशिक्षु आईएफएस के रूप में अस्पताल में आया, कोई प्राइवेट अस्पताल भर्ती करने को तैयार नहीं हुआ था। भय का माहौल ऐसा था कि कोई अस्पताल के पास से गुजरने को तैयार नहीं था। इस स्थिति में मरीजों के उपचार को डाक्टरों, नर्सिंग, पैरामेडिकल स्टॉफ के डर को दूर करना, वार्ड ब्वॉय सफाई कर्मचारियों को वार्ड में भेजने को मानसिक रूप से तैयार करना सबसे बड़ी चुनौती थी।
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में कोरोना संक्रमण का पहला मरीज मिले सोमवार को पूरा एक साल हो जाएगा। दून में स्पेन से लौटे प्रशिक्षु आईएफएस में 15 मार्च 2020 को कोरोना की पुष्टि हुई थी और उन्हें दून अस्पताल में भर्ती कराया गया था। कोरोना महामारी ने हर वर्ग को दशहत में जीने पर मजबूर कर दिया। लॉकडाउन के दौरान महीनों तक लोग घरों में कैद रहे। कई के परिजन उनसे बिछड़ गये। लोगों की दिनचर्या और जीवनशैली में कई बदलाव आए। दून अस्पताल के डिप्टी एमएस और कोरोना के स्टेट कोऑर्डिनेटर डा. एनएस खत्री का कहना है कि चीन में कोरोना के मामले आने के बाद हमने भी दून अस्पताल में तैयारियां शुरू कर दी थीं।
उन्होंने कहा कि प्राचार्य डा. आशुतोष सयाना के नेतृत्व में डाक्टरों और मेडिकल स्टॉफ के बूते हर चुनौतियों से पार पाते गये। दिल्ली से लौटे जमातियों, विभिन्न प्रदेशों से आए प्रवासियों का समुचित इलाज किया गया गया। इस दौरान सबसे ज्यादा मुश्किल ये थी कि एक ही सरकारी अस्पताल था और 300-300 मरीजों को डर के बीच मैनेज करना था। जेल से कैदी और शादियों के दौर में भी बहुत मरीज आए। कोरोना की जांच जब केवल हल्द्वानी में हो रही थी, उस दौरान सबसे ज्यादा दिक्कत आई, क्योंकि मरीज की स्थिति के बारे में सही पता नहीं पा रहा था।
सरकार ने पांच बेड के आईसीयू से 100 बेड से अधिक किये तब जाकर राहत मिली। उसी की बदौलत दून अस्पताल में साढ़े पांच हजार मरीजों को अब तक उपचार दिया जा सका। डाक्टर, मेडिकल स्टॉफ भी तमाम एहतियात के बाद संक्रमित हुए, ऊपर वाले का शुक्र रहा कि किसी हेल्थ केयर वर्कर को हमने नहीं खोया। राज्य में कोरोना काल के एक साल के दौरान कुल 97806 लोग कोरेाना संक्रमित हुए। जिसमें से 94082 मरीज पूरी तरह ठीक हो चुके हैं। जबकि 606 मरीज विभिन्न अस्पतालों में इलाज करा रहे हैं। राज्य में संक्रमण के बाद कुल 1703 मरीजों की मौत हुई है।
दून अस्पताल के डिप्टी एमएस डा. एनएस खत्री एवं कोरोना नोडल अधिकारी डा. अनुराग अग्रवाल कहते हैं कि नवंबर दिसंबर के बाद कोरोना के केस कम हो गये। जनवरी में वैक्सीन लगनी शुरू हो गई। लेकिन इसे यह न मान लिया जाए कि कोरोना खत्म हो गया। कोरोना के नये स्ट्रेन को लेकर डाक्टर सतर्क है, लगातार अध्ययन जारी है। इसीलिए वैक्सीन लगवाने के बाद भी मास्क जरूर पहनें और हाथ बार बार सेनेटाइज करते रहे। सोशल डिस्टेंस का जरूर पालन करें।
कोरोना संक्रमितों की मौत समाज की संवेदनहीनता भी सामने आई। नालापानी समेत कई जगहों पर अंतिम संस्कार का विरोध हुआ। रायपुर में पुलिस को अस्थाई समशान घाट बनाना पड़ा। पुलिस एवं प्रशासन को तमाम दिक्कतें उठानी पड़ी। दून अस्पताल की टीम पीआरओ संदीप राणा, गौरव चौहान, विजय राज समेत अन्य ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सामाजिक कार्यकर्ता मास्टर मुस्तकीम ने कई मुस्लिम समुदाय के शवों को सुपुर्द ए खाक कराने में अपना योगदान दिया।
कोरोना का शिकार हुए लोग अभी भी अस्पताल आ रहे हैं। दून अस्पताल के वरिष्ठ फिजीशियन डा. जैनेंद्र कुमार और डा. अंकुर पांडेय कहते हैं कि कोरोना में फेफड़ों पर ज्यादा असर किया है। कई मरीज आ रहे हैं और सांस फूलने जैसी समस्या बताते हैं। उन्हें इलाज दिया जा रहा है। कमजोरी एवं शरीर में दर्द भी दिक्कत है। मानसिक रूप से व्यक्ति को परेशानी होती है, जिसे भी दूर कराया जा रहा है।
कोरोना का पहला मरीज आने पर दून अस्पताल का स्टाफ बहुत डरा था। लेकिन एएनएस रामेश्वरी नेगी ने मोर्चा संभाला और सिस्टर सुनीता आर्थर के साथ वार्ड में जुट गईं मरीजों की सेवा में। उसके बाद जो जज्बा नर्सिंग समेत हर स्टाफ में जगा उसके बूते जंग आसान होती चली गई।