देहरादून : काठगोदाम (हल्द्वानी) निवासी ट्रांसपोर्टर प्रकाश पांडेय की मौत पर सरकार की घेराबंदी का कोई मौका कांग्रेस हाथ से निकलने नहीं देना चाहती। प्रदेश संगठन जहां राज्यव्यापी आंदोलन छेड़े हुए है, वहीं पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने राज्य और केंद्र की भाजपा सरकारों को निशाने पर लिया। उन्होंने आरोप लगाया कि जीएसटी और नोटबंदी से उत्तराखंड में निम्न-मध्यम वर्ग के सामने मुश्किलें खड़ी हो गई हैं। आर्थिक रूप से कमजोर इस बड़े वर्ग को इस बुरे असर से बाहर निकाला जाना चाहिए। उन्होंने सरकारी मदद पर चल रहे मदरसों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फोटो लगाने पर तीखी आपत्ति जताई।
प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय राजीव भवन में पत्रकारों से मुखातिब पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने यह भी कहा कि प्रकाश पांडे ने खुदकुशी जैसा अतिवादी कदम ठंडे दिमाग से उठाया। निम्न-मध्यम वर्ग से ताल्लुक रखने वाले पांडे संघर्षों के बल पर अपने पैरों पर खड़े हुए। उत्तराखंड में पिछले कुछ सालों में इस वर्ग की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन और खनन से जुड़े लोगों के हालात खराब हैं।
शासन और प्रशासन को इसे गंभीरता से लेना चाहिए। नए खड़े हुए उद्यमी पर पड़ रहे जीएसटी के प्रभावों का सरकार को अध्ययन कराना चाहिए। इसके आधार पर इस वर्ग को विशेषज्ञ की सहायता मुहैया कराई जाए, ताकि वे इस प्रभाव का सामना कर सकें। 50 लाख तक टर्नओवर वालों को जीएसटी से छूट मिलनी चाहिए, लेकिन राज्य सरकार ने जीएसटी काउंसिल में इस मुद्दे को नहीं उठाया। ई-वे बिल से ट्रांसपोर्टरों की दिक्कतें बढ़नी हैं।
उप्र से परिवहन करार पर सवाल
पूर्व मुख्यमंत्री ने उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड के बीच परिवहन समझौते पर भी सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि राज्य के दो सपूतों के बीच हुए इस करार को लेकर बड़े दावे भले ही किए जा रहे हों, लेकिन हकीकत में पिछली अखिलेश सरकार के साथ हुए समझौते से एक इंच भी आगे नहीं खिसका जा सका है। उत्तरप्रदेश की परिवहन संपत्तियों पर उत्तराखंड के 700 करोड़ के दावे पर विचार ही नहीं किया गया।
मदरसों के पक्ष में दी तकरीर
हरीश रावत ने राज्य के सरकारी सहायता से संचालित मदरसों पर प्रधानमंत्री मोदी की फोटो लगाए जाने के मसले को धार्मिक विश्वास को ठेस पहुंचाने वाला करार दिया। सरकार पर बरसते हुए उन्होंने कहा कि मदरसे दुनियावी नहीं, बल्कि दीनी तालीम देते हैं। ठीक उसीतरह, जैसे संस्कृत विद्यालय। ये मामला ऐसा ही है जैसे जम्मू-कश्मीर में संस्कृत विद्यालयों में मुख्यमंत्री की फोटो लगाने पर जोर दिया जाए।
उन्होंने यह तकरीर भी दी कि मदरसों में इस्लामिक व्यक्तित्व की फोटो भी नहीं लगाई जाती। उन्होंने चुटकी ली कि मोदी के रूप में नए औलिया की फोटो लगाने का क्या औचित्य है? शांत उत्तराखंड में बेवजह विवाद खड़ा नहीं किया जाना चाहिए।