ढाका। बांग्लादेश के राष्ट्रपति ने पत्रकारों और मानवाधिकार समूहों के बड़े पैमाने पर विरोध के बीच सोमवार को विवादित डिजिटल सुरक्षा अधिनियम पर हस्ताक्षर करके उसे कानून की शक्ल दे दी। पत्रकारों और मानवाधिकार समूहों का कहना है कि इस कानून से अभिव्यक्ति की आजादी खतरे में पड़ जाएगी। डिजिटल सुरक्षा विधेयक 2018 को संसद ने पारित किया था और यह ऑनलाइन धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने, 1971 के मुक्ति संग्राम और बंगबंधु (शेख मुजीबुर रहमान) के खिलाफ नकारात्मक प्रचार चलाने, ई लेन-देन में अवैध गतिविधियां करने और अपमानजनक डेटा फैलाने समेत साइबर अपराधों से निपटेगा।
बांग्लादेश के राष्ट्रपति भवन के एक प्रवक्ता ने बताया, ‘‘ राष्ट्रपति अब्दुल हामिद ने डिजिटल सुरक्षा अधिनियम को अपनी मंजूरी दे दी।’’ संसद ने 19 सितंबर को यह विधेयक पारित किया था जिसकी बड़े पैमाने पर आलोचना की गई थी। खासतौर पर अखबारों के संपादकों और पत्रकारों ने चिंता जताई थी। उनका कहना है कि यह अभिव्यक्ति की आजादी – खासतौर पर सोशल मीडिया – पर नियंत्रण लगाएगा और जवाबदेह पत्रकारिता को कमजोर करेगा।
सरकार ने उन्हें जरूरी बदलाव लाने का आश्वासन दिया था, लेकिन विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी ऐसे समय में मिली है जब सरकार और अखबारों के मालिकों के बीच बैठक होने वाली थी। नए कानून में राज्य के मामले से संबंधित किसी भी अहम सूचना तक अवैध तरीके से पहुंचना और उसे नष्ट करने के लिए सात साल से लेकर 14 वर्ष की सजा और 25 लाख टका से लेकर एक करोड़ टका तक के जुर्माने का प्रावधान है। एडिटर्स काउंसिल डिजिटल सुरक्षा अधिनियम का विरोध कर रहा है।
एक हालिया बयान में एडिटर्स काउंसिल ने कहा कि यह अधिनियम डर का माहौल निर्मित करेगा जो पत्रकारिता खासतौर पर खोजी पत्रकारिता को वस्तुत: असंभव बना देगा। बयान में कहा गया है कि इस कानून की सबसे डरावनी बात यह है कि इसमें पुलिस को मनमानी शक्तियां दी गई हैं। पुलिस भविष्य में किसी भी कथित अपराध के संदेह पर पत्रकार को गिरफ्तार कर सकती है। प्रधानमंत्री शेख हसीना ने नए कानून का बचाव करते हुए कहा है कि पत्रकार अगर फर्जी या झूठी खबर नहीं चलाते हैं या लोगों को गुमराह नहीं करते हैं तो उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जाएगा। उन्होंने पत्रकार सम्मेलन में कहा कि अगर किसी की आपराधिक मानसिकता नहीं है या अपराध करने की योजना नहीं है तो उसके लिए चिंता की कोई बात नहीं है।