देहरादून। अगर आपके बच्चे स्कूल की निर्धारित बस या वैन के बजाय अवैध रूप से बुक कर चलाई जा रहीं सिटी बसों, निजी बसों, वैन, ऑटो या विक्रम में स्कूल आते-जाते हैं तो एक अगस्त से आपकी फजीहत तय है। स्कूली वाहनों को लेकर दिए हाईकोर्ट के फैसले के क्रम में परिवहन विभाग द्वारा इन अवैध स्कूली वाहनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। एक अगस्त से स्कूली बच्चों को सिर्फ वही वाहन ले जा सकेंगे, जिनके मानक स्कूली वाहन के अनुरूप होंगे। जो वाहन यह मानक पूरे नहीं करेंगे, उन्हें उसी वक्त सीज कर दिया जाएगा।
देहरादून शहर में महज 10 फीसद स्कूल या कालेज ही ऐसे हैं, जिन्होंने अपनी बसें खरीदी हुई हैं, जबकि 40 फीसद स्कूल ऐसे हैं जो बुकिंग पर सिटी बस और निजी बसें लेकर बच्चों को परिवहन सुविधा उपलब्ध कराते हैं। बाकी 50 फीसद स्कूल भगवान भरोसे रहते हैं। निजी बस सुविधाओं वाले 40 फीसद स्कूलों को मिलाकर 90 फीसद स्कूल प्रबंधन और इनसे जुड़े अभिभावकों के लिए एक अगस्त से बड़ी मुसीबत आने वाली है। स्कूल प्रबंधन तो फिर भी पल्ला झाड़ लेंगे, मगर उन अभिभावकों का क्या होगा, जो बच्चों को स्कूल भेजने के लिए सिटी बस, निजी बस, वैन, ऑटो व विक्रम पर निर्भर हैं। इन अभिभावकों को अब या तो अपने वाहन से बच्चों को स्कूल छोडऩे या लेने आना पड़ेगा, या बच्चे खुद वाहन लेकर स्कूल आएंगे। छोटे बच्चों के सामने सबसे बड़ी परेशानी खड़ी हो सकती है।
अभिवभावकों के लिए विकल्प नहीं
निजी स्कूल बसों के साथ ही ऑटो व वैन चालक क्षमता से कहीं ज्यादा बच्चे ढोते हैं। इन्हें न नियम का ख्याल है और न सुरक्षा के इंतजाम। अभिभावक इन हालात से अंजान नहीं हैं, लेकिन दिक्कत ये है कि स्कूलों ने विकल्पहीनता की स्थिति में खड़ा किया हुआ है। निजी स्कूल यह जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं हैं। हालात यह हैं कि किसी स्कूल में छात्रों के अनुपात में स्कूल बसों की तादाद ना के बराबर है तो कहीं बस का इंतजाम ही नहीं है। स्कूलों के तर्क भी अजब-गजब हैं। बसों की पर्याप्त सेवा क्यों नहीं है, इस पर गोलमोल सा जवाब देते हैं कि गलियों में बसों को आने-जाने मेंं दिक्कत होती है। दरअसल, अधिकतर पब्लिक स्कूल सरकारी कायदों नहीं बल्कि मनमानी पर चलते हैं। उन्हें न बच्चों की परवाह है, न अभिभावकों की। अगर किसी चीज की परवाह है तो वह बच्चों से मिलने वाली सिर्फ मोटी फीस की। बच्चे कैसे आ रहे या कैसे जा रहे हैं, स्कूल प्रबंधन को इससे कोई मतलब नहीं। अभिभावक इस विकल्पहीनता की वजह से निजी बसों या ऑटो-विक्रम को बुक कर बच्चों को भेज रहे हैं।
स्कूल बसों को टैक्स में 50 फीसद छूट देने की तैयारी
निर्धारित स्कूल बसों को बढ़ावा देन के लिए परिवहन विभाग इन्हें टैक्स में पचास फीसद छूट देने की तैयारी कर रहा है। वर्ष 2012-13 में टैक्स निर्धारण समिति ने जो शर्तें तय की थीं, उसमें स्कूली वैन को ही टैक्स में पचास फीसद छूट दी गई थी मगर बसें इस छूट से वंचित रहीं। चूंकि, स्कूली बसों की अब सबसे ज्यादा जरूरत पड़ेगी, इसलिए टैक्स निर्धारण समिति ने बसों को भी पचास फीसद छूट देने का प्रस्ताव बना परिवहन मुख्यालय को भेज दिया है। यह माना जा रहा कि इससे स्कूल प्रबंधन और निजी ट्रांसपोर्टर स्कूली बसें खरीद सकेंगे।
फुटकर सवारी को छूट
बुकिंग के वाहन के बजाय अगर कोई स्कूली छात्र-छात्रा, रूट पर चल रही सिटी बस, निजी बस या विक्रम से सफर करता है तो उसे छूट रहेगी। परमिट की शर्तों के अनुसार रूट पर चल रहा वाहन किसी भी सवारी को ले जाने से मना नहीं कर सकता है।
स्कूली वाहनों के मानक
- स्कूल वाहन का रंग सुनहरा परला हो, उस पर दोनों ओर और बीच में चार इंटर मोटी नीले रंग की पट्टी हो।
- स्कूल बस में आगे-पीछे दरवाजों के अतिरिक्त दो आपातकालीन दरवाजे हों।
- सीटों के नीचे बैग रखने की व्यवस्था हो।
- बसों व अन्य वाहनों में स्पीड गवर्नर लगा हो।
- एलपीजी समेत सभी वाहनों में अग्निशमन संयंत्र मौजूद हो।
- पांच साल के अनुभव वाले चालकों से ही स्कूल वाहन संचालित कराया जाए।
- स्कूल वाहन में फस्र्ट एड बॉक्स की व्यवस्था हो।
- बसों की खिड़कियों के बाहर जाली या लोहे की डबल रॉड लगाना अनिवार्य।
- छात्राओं की बस में महिला परिचारक का होना अनिवार्य।
दिनेश चंद्र पठोई (आरटीओ) का कहना है कि स्कूली वाहनों को लेकर हाईकोर्ट के स्पष्ट आदेश हैं कि सिर्फ निर्धारित मानक वाले ही वाहन संचालित हों। अवैध तरीके से संचालित सभी वाहनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। इस शुरूआत में व्यवहारिक परेशानियां आएंगी लेकिन भविष्य के लिए यह बेहतर फैसला होगा। स्कूल बसों का टैक्स पचास फीसद माफ करने की तैयारी हो रही है। स्कूलों को भी अपनी बसें लेने के लिए प्रेरित किया जाएगा।