वाशिंगटन। सऊदी तेल कंपनी अरामको पर ड्रोन हमले के बाद अमेरिका ने ईरानी तेल संयंत्रों पर हमले की तैयारी कर ली थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक, अमेरिकी सैन्य अफसरों ने सोमवार को राष्ट्रीय सुरक्षा बैठक में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के सामने इसको लेकर योजना भी रखी। इसमें सैन्य हमलों के साथ साइबर हमलों का विकल्प भी पेश किया गया।
न्यूज वेबसाइट एनबीसी और पॉलिटिको ने ट्रम्प के करीबी अधिकारियों के हवाले से बताया कि अमेरिकी राष्ट्रपति अपने चुनावी वादे को पूरा करने के लिए ईरान पर हमला नहीं करना चाहते। ट्रम्प ने 2016 में अपने अभियान में वादा किया था कि उनके शासन में कोई नया विदेशी विवाद शुरू नहीं होगा। इसके अलावा ट्रम्प यह भी जानते हैं।
अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो हालात का जायजा लेने बुधवार को सऊदी अरब के जेद्दा और यूएई की राजधानी अबु धाबी जाएंगे। वे जेद्दा में सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के साथ बैठक करेंगे। इसमें दोनों के बीच ईरानी हमले का मुकाबला करने पर चर्चा हो सकती है।
कुछ अन्य रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि अमेरिका ने सऊदी अरब पर हमले के लिए इस्तेमाल की गईं ईरानी लॉन्च साइट का पता लगा लिया है। एक वरिष्ठ अमेरिकी अफसर ने कहा है कि यह जगहें दक्षिणी ईरान और खाड़ी के पूर्व में स्थित हैं। हालांकि, ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने हमलों में हाथ होने से इनकार किया है। उन्होंने इसे यमनी लोगों का बदला करार दिया।
पिछले हफ्ते तेल कंपनी अरामको पर हुए हमले की जिम्मेदारी यमन के हूती विद्रोहियों ने ली थी। अमेरिका और सऊदी अरब लंबे समय से यमन में सैन्य ऑपरेशन चला रहे हैं। दोनों ही वहां पूर्व राष्ट्रपति मंसूर हादी को सत्ता में वापस लाना चाहते हैं, जबकि हूती विद्रोही हादी का विरोध करते हैं। ईरान भी हादी का विरोधी रहा है। इसलिए उस पर हूती विद्रोहियों को हथियार मुहैया कराने के आरोप लगाते रहे हैं।
हमले की वजह से सऊदी का तेल उत्पादन आधा हुआ
हूती विद्रोहियों ने अराम को की दो बड़ी रिफाइनरियों पर ड्रोन से हमला कर दिया था। इसके चलते दोनों जगहों पर तेल उत्पादन अस्थाई रूप से बंद कर दिया गया। सऊदी के ऊर्जा मंत्री ने बताया था कि इस एहतियाती रोक के चलते देश का कुल तेल उत्पादन आधा हो गया। हमलों की वजह से प्रतिदिन 57 लाख बैरल कच्चे तेल (क्रूड ऑयल) के उत्पादन पर असर पड़ा है।