केदारनाथ तक हवा में सफर का रोमांच देने की परियोजना पर अड़ंगा
इससे यात्रा न केवल सुगम होगी, बल्कि यात्रा के खर्च में भी कमी आएगी। कारण, हेलीकॉप्टर का किराया पांच से छह हजार रुपये के बीच है, रोपवे में वह काफी कम होगा। साथ ही सफर का रोमांच भी बढ़ जाएगा। इसके लिए सर्वे का काम भी पूरा हो गया। फिलहाल स्थिति यह है कि प्रकिया पूरी न होने के कारण यह महत्वपूर्ण परियोजना आगे नहीं बढ़ पा रही है।
केदारनाथ तक हवा में सफर का रोमांच देने की रोपवे परियोजना। परियोजना का खाका खींचा गया। कहा गया कि इसके बनने से केदारनाथ और गौरीकुंड की हवाई दूरी नौ किलोमीटर रह जाएगी। पैदल मार्ग की दूरी 16 किलोमीटर है। पैदल यात्रा में आमतौर पर जिस दूरी को तय करने में छह से सात घंटे लगते हैं, रोपवे से वह दूरी मात्र 30 मिनट में ही तय की जा सकेगी।
कब अस्तित्व में आएगा अंडरपास
भारतीय सेना को युवा अधिकारी देने वाली भारतीय सैन्य अकादमी। इस अकादमी के बीच से होकर गुजरने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग-72। यह मार्ग देहरादून को हिमाचल, हरियाणा, चंडीगढ़, उत्तर प्रदेश और पंजाब से जोड़ता है। सड़क के अकादमी के दो परिसरों के बीच से गुजरने के कारण अकादमी की सुरक्षा को लेकर तो सवाल उठते ही हैं, पासिंग आउट परेड के दौरान यहां यातायात भी बाधित रहता है।
चार दशकों से यहां अंडरपास बनाने की बात चल रही है। वर्ष 2009-10 में बाकायदा इस संबंध में प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा गया। इस पर स्वीकृति तो मिल गई लेकिन निर्माण को लेकर लोक निर्माण विभाग और आइएमए प्रबंधन में एक राय नहीं बन पाई। नतीजतन, यह मामला एक बार फिर लंबित हो गया। दिसंबर 2019 में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने यहां केंद्र सरकार द्वारा अंडरपास बनाने की घोषणा की। बावजूद इसके धरातल पर आज तक कुछ नहीं हो पाया है।
पहाड़ों पर नहीं चढ़े उद्योग
पर्वतीय क्षेत्रों में औद्योगिक विकास के लिए तमाम कदम उठाए गए, बावजूद इसके आज तक उद्योग पहाड़ों पर चढ़ नहीं पाए। वर्ष 2008 में तत्कालीन मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी द्वारा लाई गई पर्वतीय औद्योगिक नीति हो या वर्ष 2014 में हरीश रावत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार की हिमालयी उद्योग नीति, हालात पर कोई असर नहीं पड़ा। मौजूदा सरकार ने भी इस दिशा में कदम उठाने को भारी उद्योग और एमएसएमई नीति तैयार की। पहाड़ों में सिडकुल की तर्ज पर लैंड बैंक बनाने की बात हुई लेकिन अभी तक इस दिशा में बहुत काम नहीं हो पाया है। वर्ष 2008 और वर्ष 2014 में लागू की गई नीति के कारण पर्वतीय क्षेत्रों में उद्योग लगाने को सरकारी रियायत के आधार पर जमीन तो ली गई, मगर किया कुछ नहीं गया। अब मौजूदा सरकार ने छोटे उद्योगों पर फोकस किया है। इससे दोनों पुरानी नीतियां ठंडे बस्ते में चली गई हैं।
होमगार्ड की भर्ती पर ब्रेक
चारधाम यात्रा से लेकर ट्रैफिक संचालन तक में अहम भूमिका निभाने वाले होमगार्डों की नई भर्ती दो वर्षों से लंबित चल रही है। इनके मानदेय की बढ़ोतरी के मसले को देखते हुए भर्ती प्रक्रिया फिलहाल ठंडे बस्ते में है। दरअसल, दिसंबर 2018 में होमगार्ड मुख्यालय में आयोजित रैतिक परेड में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने होमगार्डों की संख्या 6411 से बढ़ाकर 10 हजार करने को एलान किया था।
मकसद यह कि चारधाम यात्रा, कुंभ-अर्धकुंभ और समय-समय पर होने वाले चुनावों से लेकर जिलों में ट्रैफिक सुधार में इनका सहयोग लिया जा सके। अभी तक कुंभ और चुनाव जैसे आयोजनों में दूसरे प्रदेशों से होमगार्ड बुलाने पड़ते हैं। केंद्र ने भी इसके लिए अनुमति दे दी थी। भर्ती प्रक्रिया आगे बढ़ पाती, इससे पहले कोर्ट के निर्देश पर इनका मानदेय न्यूनतम 18 हजार रुपये करना पड़ा। वित्तीय भार को देखते हुए प्रदेश सरकार नई भर्ती पर कदम पीछे खींचे हुए है।