वुहान में मोदी-जिनपिंग की मुलाकात भारत-चीन के संबंधों का नया दौर

वॉशिंगटन। पिछले दिनों चीन के हुबेई प्रांत की राजधानी वुहान में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग के बीच मुलाकात हुई। अब चीनी मीडिया ने कहा है कि वुहान में हुई इस अनौपचारिक मुलाकात ने भारत-चीन के बीच नाजुक द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत करने का काम किया है। चीन के अखबार साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्‍ट में सौरभ गुप्‍ता ने अपने कॉलम में यह बात कही है। सौरभ अमेरिका की राजधानी वॉशिंगटन में चीन-अमेरिका स्‍टडीज इंस्‍टीट्यूट में सीनियर फेलो हैं। आपको बता दें कि सेंट्रल चीन के शहर वुहान में 27 और 28 अप्रैल को पीएम मोदी और जिनपिंग के बीच अनौपचारिक मुलाकात हुई थी और इस मुलाकात में दोनों नेताओं ने कई अहम मुद्दों पर चर्चा की थी।

बॉर्डर पर आएगी शांति

सॉउथ चाइना मॉर्निंग पोस्‍ट में सौरभ गुप्‍ता ने लिखा है मोदी-जिनपिंग की मुलाकात दो बातों के लिए सबसे अहम है। पहली कि जिन बातों पर दोनों नेता रजामंद हुए हैं, उन्‍हें लागू किया जाएगा और दूसरी सन् 80 के अंत से भारत-चीन के बीच बॉर्डर पर हालातों को सामान्‍य करने के लिए जो जद्दोजहद जारी है, उस पर भी इस मुलाकात में दोनों देश एक अहम पड़ाव पहुंचे हैं। दोनों नेता इस बात पर राजी हुए हैं कि बॉर्डर पर किसी भी विवाद से बचने के लिए दोनों नेता अपनी-अपनी सेनाओं का रणनीतिक मार्गदर्शन देंगे। इसके अलावा बॉर्डर पर दो संवेदनशील बिंदुओं पर सीमित ज्‍वॉइन्‍ट पेट्रोलिंग को लाइन ऑफ एक्‍चुअल कंट्रोल (एलएसी) के दूसरे हिस्‍सों तक बढ़ाने पर भी सहमति बनी है। अखबार के मुताबिक हिमालय के क्षेत्र में मौजूद बॉर्डर की वजह से पिछले कुछ वर्षों में दोनों पक्षों के बीच काफी तनाव देखा गया और पिछले वर्ष तो तनाव डोकलाम विवाद की भी वजह बन गया था। अब इस मुलाकात के बाद उम्‍मीद है कि तनाव में कुछ कमी आ सकेगी।

एक यादगार पल वुहान समिट

सौरभ गुप्‍ता ने लिखा है कि भारत-चीन बॉर्डर दोनों देशों के बीच एक विवाद और एक मापदंड दोनों की ही तरह है। नई दिल्‍ली के मुताबिक बॉर्डर पर शांति और स्थिरता या फिर इसकी कमी की वजह लंबा एतिहासिक सीमा विवाद है। वहीं चीन इस बॉर्डर को भारत की चीनी नीतियों पर जरूरी दबाव बनाने के लिए नजरिए से देखता है। इसके अलावा चीन बेहतर परिस्थितियों में बॉर्डर को पड़ोसी के साथ मिलनसार व्‍यवहार को बढ़ाने के तौर पर भी देखता है। ऐसे में वुहान समिट को एक ऐसे पल के तौर पर याद किया जाएगा जब भारत और चीन के नेताओं ने दोनों देशों के बीच संबंधों को नए सिरे से शुरू किया है। अगर मोदी-जिनपिंग की पूर्व में हुई दो मुलाकातों से वुहान की तुलना करें तो पता चलता है वुहान समिट की अहमियत काफी ज्‍यादा है।

अखबार में लिखा है कि पिछले दो दशकों के दौरान हर बार सीमा विवाद को लेकर एक गहन और सफल प्रयास किया गया है। वर्तमान में भी वही सिलसिला जारी है लेकिन इस बार यह थोड़ा अलग है। हालांकि अभी दोनों देशों को इंतजार करना होगा कि मोदी साल 2019 में फिर से पीएम चुने जाएं और सीमा विवाद सुलझाने के लिए चालाक स्‍पेशल प्रतिनिधि हों। वहीं चीन के परिप्रेक्ष्‍य में अगर देखें तो इस समय भारत और अमेरिका के बीच नजदीकियां बढ़ रही हैं। चीन का बेल्‍ट एंड रोड इनीशिएटिव यानी बीआरआई ने भारत के प्रभाव को पड़ोस में कम किया है। अगर पूर्व की घटनाओं पर नजर डालें तो भारत-चीन और दोनों ने अपनी -अपनी चुनौतियों को सफलतापूर्वक पूरा किया है।

NSG में भारत का समर्थन कर सकता है चीन

न्‍यूक्लियर सप्‍लायर्स ग्रुप में भारत की एंट्री को चीन की हरी झंडी मिल सकती है अगर भारत और अमेरिका के बीच रक्षा संबंध सिर्फ द्विपक्षीय रहते हैं और त्रिपक्षीय नहीं होते हैं तो। अखबार के मुताबिक हो सकता है कि भारत बीआरआई पर जारी अपने विरोध को बंद कर दे और हो सकता है कि इस प्रोजेक्‍ट से सीख ले कि कैसे एक प्रोजेक्‍ट इस क्षेत्र में कनेक्टिविटी, एकता और समृद्धता का वाहक है। इस अखबार में कहा गया है कि वुहान समिट को इतिहास में जरूर एक छोटी मुलाकात के तौर पर याद किया जाएगा लेकिन यह मुलाकात व्‍यर्थ नहीं जाएगी और इसके लिए मोदी और जिनपिंग को श्रेय दिया जाना चाहिए।

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