त्रिपुरा में कांग्रेस-माकपा के अवैध दफ्तरों को गिराया गया, चढ़ा सियासी पारा

त्रिपुरा। विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत दर्ज कर भाजपा ने सत्ता हासिल की थी। वाम किले को ध्वस्त करने के साथ ही बीजेपी के सूर्य का पूर्वोत्तर के राज्यों में उदय हुआ। त्रिपुरा में अब सरकार के फैसले के बाद ने विपक्षी दलों के सरकारी जमीनों पर पार्टी दफ्तर को तोड़ने का काम भी शुरू कर दिया है। इलपर आरोप है कि ये पार्टी दफ्तर सरकारी जमीनों पर अवैध रूप से बने थे, जिसके बाद राजनीतिक दलों के करीब 300 दफ्तरों को नोटिस भेजा गया था।

अवैध रूप से बने राजनीतिक दलों के ऑफिस, ट्रेड यूनियन के दफ्तरों को हटाने से सम्बंधित फैसला कैबिनेट की बैठक में लिया गया था। इसमें कुछ BJP के दफ्तर भी शामिल हैं। सर्वे में ये पाया गया कि कई दलों के ऑफिस सरकारी जमीनों पर बने हैं। उन्हें 17 अप्रैल को त्रिपुरा सरकार ने नोटिस देते हुए इस जगह को खाली करने को कहा था।

वहीं विपक्षी दलों का आरोप है कि इसके लिए कोई सर्वदलीय बैठक क्यों नहीं बुलाई गई? रेवेन्यू मिनिस्टर देबबर्मा ने कहा कि पहले ही जगह को खाली करने के लिए नोटिस दिया गया था लेकिन उन्होंने नहीं किया। इसलिए क़ानूनी तौर पर ये कार्रवाई की जा रही है। जबकि कांग्रेस ने इसे मिलिट्री शासन करार दिया है और कहा है कि जब से भाजपा ने सत्ता हासिल की है तभी से ही त्रिपुरा में अराजकता का माहौल है। ये तानाशाही रवैया है। इसके लिए कोई सर्वदलीय बैठक बुलाई जानी चाहिए थी। 25 लाख की लागत से अभी हाल ही में एक दफ्तर बनाया गया था, जोकि यो लोग तोड़ देंगे। CIP(M) ने इस फैसले के खिलाफ कोर्ट जाने की चेतावनी दी है और कहा है कि उम्मीद है कि न्याय मिलेगा।

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