रीता बहुगुणा का भाजपा में शामिल होने के बाद पार्टी का उत्तर प्रदेश की राजनीति में बहुत बड़ा नाम रहे हेमवती नंदन बहुगुणा की विरासत पर अब पार्टी का सर्वाधिकार हो गया।
नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश जैसे विशाल राज्य के चुनावी समीकरण में जातिगत दावपेंच को पूरी तरह खारिज करना मुश्किल है। ऐसे में पिछले चुनाव में कांग्रेस का चेहरा रहीं रीता बहुगुणा जोशी के भाजपा में आने के बाद यह तो तय है ही कि भाजपा का ब्राह्मण वोट थोड़ा और सुदृढ़ होगा। लेकिन भाजपा के लिए उससे भी बड़ी जीत यह है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में बहुत बड़ा नाम रहे हेमवती नंदन बहुगुणा की विरासत पर अब पार्टी का सर्वाधिकार हो गया। लिहाजा रीता की विशेष भूमिका भले ही उत्तर प्रदेश में रहे लेकिन असर उत्तराखंड तक पर दिख सकता है। रीता के भाई व उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा पहले ही भाजपा में आ चुके हैं।
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में एक साथ ही चुनाव होने हैं। भाई-बहन होने के साथ साथ दोनों राज्य में एक राजनीतिक समानता यह भी रही है कि यहां अगड़ी जाति की राजनीति भी खुलकर होती है। उत्तर प्रदेश में शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाकर कांग्रेस ने यही दाव खेला था।
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गौरतलब है कि प्रदेश में लगभग 11 फीसद ब्राह्मण वोट है और कभी बसपा ने अपने दलित वोट के साथ ब्राह्मण वर्ग को जोड़कर विधानसभा पर पूरा कब्जा किया था। रीता बहुगुणा को शामिल कर पार्टी ने कांग्रेस की रणनीति को पंक्चर कर दिया है। भाजपा ने पहले ही बसपा के ब्राह्मण नेताओं में सेंध लगी दी है।
बताते हैं कि आने वाले दिनों में दूसरे दलों के कुछ और बड़े नेता भी भाजपा में शामिल होंगे। लेकिन रीता के आने का खास अर्थ है। उत्तर प्रदेश की राजनीति में दो बार मुख्यमंत्री रहे हेमवती नंदन बहुगुणा के नाम का असर अब भी देखा जा सकता है। रीता के आने के बाद अब भाजपा के पास ही उनकी विरासत आ गई है। दरअसल उत्तर प्रदेश में एक खेमा ऐसा है जो आज भी बहुगुणा के नाम पर रीता और कांग्रेस को वोट देता है। बहुगुणा भी कांग्रेस छोड़ने को मजबूर हुए थे और उनके बेटे और बेटी विजय और रीता भी कांग्रेस नेतृत्व के रुख से नाराज होकर भाजपा में आ गए हैं।
उत्तराखंड में भी भाजपा इसे भुनाने की कोशिश करेगी। भाई-बहन अब एक सुर में कांग्रेस के अंदर का राज भी खोलेंगे और भाजपा के लिए वोट भी मांगेंगे।