आज बेचारा आलू भी निराश हो गया

patatoउन महानुभाव ने यदि कह भी दिया कि वे किसानों के लिए आलू की फैक्टरी लगाएंगे तो इसमें होहल्ला मचाने, उनकी टांगें खींचने की जरूरत क्यों? भैया, वे या उनके जैसे राजनीति के भगवान धरती लोक की बातें क्या जानेंगे? वे दूसरे लोक में निवास करते हैं, उन्हें कैसे पता रहेगा कि आलू जमीन में उगता है। ये तो बस किसान ही जानता है कि खेत में पसीना गिराकर वे बड़ी मुश्किल से आलू पैदा करते हैं। फिर आलू को उन्हें मंडी में औने-पौने दाम में बेचने पर मजबूर कर दिया जाता है।

आज बेचारा आलू भी निराश हो गया है, क्योंकि विश्वभर में चर्चित आलू के बारे में युवराज नहीं जानते कि आलू कहां पैदा होता है? कितना दर्द हो रहा होगा बेचारे आलू को। पैदा होने के बाद बच्चा सबसे पहले सब्जी में आलू को ही जानता है और आलू ही खाता है। वैसे तो आलू को ‘राष्ट्रीय कंद’ की उपाधि मिलनी ही चाहिए थी। लेकिन लानत है इस देश के नेताओं पर जिन्होंने कभी आलू की उपयोगिता पर विचार ही नहीं किया। भले ही अपने स्वार्थ के लिए आलू को सामने रखकर राजनीति शुरू कर देंगे, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर आलू को मान-सम्मान मिले, इस पर कभी नहीं सोचेंगे।

पैदा होने के बाद बच्चा सबसे पहले सब्जी में आलू को ही जानता है और आलू ही खाता है। वैसे तो आलू को ‘राष्ट्रीय कंद’ की उपाधि मिलनी ही चाहिए थी।

भारतीय भोजन में आलू की लोकप्रियता निर्विवाद है। दूसरे कंद या सब्जियों की अपेक्षा आलू में सामाजिक और भाईचारे की भावना कूट-कूट कर भरी है। वह हर समय, हर कदम पर दूसरी सब्जियों के साथ भाईचारा निभाने के लिए तत्पर रहता है। पालक, गोभी, मटर, परवल, बैंगन और यहां तक कि अंडा और मुर्गी-मटन तक के साथ शामिल होकर सब्जी बनाने में सहयोग करता है। वैसे भी आलू को गरीब की सब्जी की उपाधि मिली हुई है। दूसरी सब्जियों के दाम दिन-ब-दिन सुरसा के मुंह की तरह बढ़ते चले जाएंगे, लेकिन आलू के दाम प्राय: कम ही होते हैं। यदि बढ़ते भी हैं तो धीमी गति से।

वैसे आलू को अपने पर गर्व था कि उसे लेकर नेता तरह-तरह की राजनीति करते हैं। जैसे ही आलू की कीमत थोड़ी सी बढ़ जाती है, विपक्षी आलू के हार पहनकर सडक़ पर उतर आते हैं और सरकार को हायज् हायज् कहने लग जाते हैं। गोभी, मटर जैसी सब्जियों के भाव 20 से 100-150 रुपए किलो पहुंच जाते हैं, तब भी कोई होहल्ला नहीं होता, नेतागिरी नहीं होती। ऐसे में आलू को अपने आप पर घमंड होना तो स्वाभाविक है। पर इस अभिमान के बीच आलू को थोड़ा अपमान भी महसूस हुआ कि राष्ट्रीय पार्टी के उपाध्यक्ष को इस राष्ट्रीय कंद के पैदावार की जानकारी ही नहीं है। आलू ने मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना की कि वे उन उपाध्यक्ष महोदय को सद्बुद्धि दे।

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