न्यायमूर्ति मजहर अली नकवी की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय पीठ इसकी सुनवाई कर रही है। इस मामले में अल्मीडा भी प्रतिवादी हैं। अदालत ने अगली सुनवाई तक शरीफ, अब्बासी और अल्मीडा को भी लिखित जवाब दायर करने का आदेश दिया है। न्यायालय ने इस मामले में अनुच्छेद छह (देशद्रोह) के संबंध में सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में डिप्टी अटॉर्नी जनरल मियां तारिक से सवाल-जवाब किए। पीठ के सदस्य न्यायमूर्ति जहांगीर ने पूछा, “अनुच्छेद छह के तहत कदम उठाने का कार्य सरकार का है…उसने अब तक क्या किया है?” अदालत ने अल्मीडा का नाम ‘एग्जिट कंट्रोल लिस्ट’ से हटाने और उनके खिलाफ जारी गैर जमानती वारंटों को वापस लेने का भी आदेश दिया।‘एग्जिट कंट्रोल लिस्ट’ पाकिस्तान सरकार की सीमा नियंत्रण प्रणाली है जिसके जरिए सूची में शामिल व्यक्तियों को देश छोड़ने की मनाही होती है।
यह याचिका सिविल सोसाइटी की कार्यकर्ता अमीना मलिक ने डॉन समाचारपत्र को पिछले साल मई में दिए गए शरीफ के साक्षात्कार के खिलाफ दाखिल की थी। इसमें शरीफ ने कहा था कि 2008 के मुंबई हमले मामले में शामिल लोग असल में पाकिस्तान के थे। याचिकाकर्ता ने कहा कि शरीफ के “देश विरोधी” बयान को पाकिस्तान के दुश्मन उसके खिलाफ इस्तेमाल कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की बैठक अयोग्य ठहराए गए प्रधानमंत्री के “भ्रामक” बयान पर चर्चा करने के लिए हुई थी और तत्कालीन प्रधानमंत्री खाकान अब्बासी ने शरीफ से मुलाकात कर उनके बयान पर सैन्य नेतृत्व की चिंताओं से शरीफ को अवगत कराया।
उन्होंने कहा, “अब्बासी की यह हरकत उनके पद की शपथ का स्पष्ट उल्लंघन थी क्योंकि वह अपने निजी हित को अपने आधिकारिक आचरण पर हावी नहीं होने देने के लिए बाध्य थे।” इसमें तर्क दिया गया कि शरीफ ने देश को धोखा दिया है और उनपर विवादित साक्षात्कार देने एवं उसके प्रसारण की अनुमति देने के लिए देशद्रोह का मुकदमा चलना चाहिए।मामले में अगली सुनवाई 22 अक्टूबर को होगी।