लॉकडाउन में सीजेरियन से चार गुना ज्यादा हुई नॉर्मल डिलीवरी

लॉकडाउन में सीजेरियन से चार गुना ज्यादा हुई नॉर्मल डिलीवरी

निजी अस्पतालों में सीजेरियन की बढ़ती प्रवृत्ति पर इन आंकड़ों के हवाले से अंगुली जरूर उठेगी। इससे एक बात तो साफ है कि क्या सीजेरियन से प्रसव के मामलों में गर्भवती महिलाओं की वाकई इसकी जरूरत होती है।

लॉकडाउन में सरकारी अस्पताल में ऑपरेशन से प्रसव सीजेरियन की संख्या अपेक्षाकृत काफी कम रही। जबकि नॉर्मल डिलीवरी काफी कराई गई। जबकि निजी अस्पताल पूरी तरह से बंद थे।

या फिर इसके पीछे कोई और मंशा काम करती है। बता दें बीते कुछ वर्षों में अस्पतालों सीजेरियन की प्रवृत्ति काफी हद तक बढ़ गई है। इस बात को लेकर समय-समय पर अंगुली भी उठती रहती है।

बीती 23 मार्च को हुए लॉकडाउन का सिलसिला जून के प्रथम सप्ताह तक चला। लॉकडाउन-3 में कुछ निजी अस्पतालों में इलाज की मंजूरी दी गई थी।

लेकिन, इससे पूर्व केवल सरकारी अस्पताल में ही इमरजेंसी की मंजूरी थी। इस दौरान निजी अस्पतालों में डिलीवरी के मामले कम आए जो आए भी उनमें कम ही ऐसे थे जिनका प्रसव ऑपरेशन से हुआ।

वहीं यदि सरकारी अस्पताल के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो अस्पताल में लॉकडाउन के दौरान कुल 459 केस आए। इनमें से 83 का सीजेरियन और 376 की नॉर्मल डिलीवरी कराई गई। जबकि जनवरी व फरवरी माह में 493 केस आए इनमें से 86 का सिजेरियन कराया गया और 407 की नॉर्मल डिलीवरी कराई गई।

यदि निजी अस्पतालों की बात करें तो वहां सीजेरियन के नाम पर 15 हजार से लेकर 40 हजार रुपये तक लिए जाते हैं। सूत्र बताते हैं कि सरकारी अस्पताल के कुछ लोग भी निजी अस्पताल से सांठगांठ रखते हैं।

सिजेरियन केस को निजी अस्पताल को कमीशन के लिए भेज देते हैं। जहां निजी अस्पतालों का खर्चा कई हजारों में होता है, वहीं सरकारी अस्पताल में सीजेरियन का खर्चा नाम मात्र का होता है।

सरकारी अस्पताल में नॉर्मल व सीजेरियन के आंकड़े

  • मार्च माह में 189 केस आए इनमें से मात्र 27 का सीजेरियन और 162 की नॉर्मल डिलीवरी कराई गई।
  • अप्रैल माह में 125 केस आए जिनमें से 19 का सीजेरियन और 106 की नॉर्मल डिलीवरी कराई गई।
  • मई माह में 145 केस आए जिनमें से 37 का सीजेरियन और 108 की नॉर्मल डिलीवरी कराई गई।

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