देवभूमि उत्तराखंड में साल-दर-साल बढ़ रही बेटियां, लिंगानुपात 922 से बढ़कर हुआ 949
नीति आयोग के निष्कर्षों के आधार पर मीडिया के एक वर्ग में उत्तराखंड में जन्म के समय लिंगानुपात को लेकर आई खबरों के बाद महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रेखा आर्य ने सरकार की ओर से स्थिति स्पष्ट की। उन्होंने कहा कि राज्य में चल रही ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ योजना के प्रभावी क्रियान्वयन से जन्म के समय लिंगानुपात में लगातार सुधार हो रहा है। उन्होंने बताया कि वर्तमान में राज्य के पांच जिले बागेश्वर, अल्मोड़ा, चम्पावत, देहरादून व उत्तरकाशी देश के 50 सर्वाधिक लिंगानुपात वाले जिलों में शामिल हैं। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की ओर से पिछले वर्ष 24 सितंबर को राज्य को भेजे गए पत्र से इसकी पुष्टि होती है।
करीब 80 फीसद साक्षरता दर वाले उत्तराखंड में बेटियां साल-दर-साल बढ़ रही हैं। राज्य में जन्म के समय लिंगानुपात में लगातार सुधार हो रहा है। सरकारी आंकड़े इसकी तस्दीक कर रहे हैं। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार राज्य में वर्ष 2017-18 में जन्म के समय लिंगानुपात 922 था। यानी, प्रति हजार बालकों पर इतनी बालिकाओं का जन्म हो रहा था। वर्ष 2018-19 में यह आंकड़ा बढ़कर 938 और वर्ष 2019-20 में 949 पहुंच गया।
योजना के बेहतर क्रियान्वयन के लिए केंद्र सरकार तीन बार राज्य को राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत कर चुकी है। वर्ष 2019 में देहरादून जिले को देश के 16 सर्वश्रेष्ठ जिलों में शामिल कर योजना में समुदाय की प्रभावी सहभागिता, सितंबर 2019 में ऊधमसिंहनगर जिले को जन्म के समय बेटियों के लिंगानुपात में वृद्धि और मार्च 2020 में प्रचार-प्रसार की नवाचार पहल के लिए देश के 25 जिलों में शामिल होने पर पुरस्कृत किया गया।
राज्यमंत्री आर्य ने कहा कि प्रदेश में इस योजना को अब और अधिक प्रभावी तरीके से क्रियान्वित किया जाएगा। जन्म के समय लिंगानुपात वाले राज्यों में प्रदेश की स्थिति और बेहतर करने के लिए नीति आयोग के एसडीजी इंडिया इंडेक्स रिपोर्ट-2020 में दिए गए सुझावों के अनुरूप कार्य करने के निर्देश अधिकारियों को दिए गए हैं। सभी जिला कार्यक्रम अधिकारियों को योजना की हर माह समीक्षा करने के साथ ही बेहतर अंतरविभागीय समन्वय से कार्य करने को कहा गया है।