भोले की बारात में यहां शिरकत करती हैं अदृश्य शक्तियां

भोपाल। महाशिवरात्रि पर हर ओर अलग ही माहौल नजर आता है। भोलेनाथ के विवाहके अवसर पर विधि-विधान से पूजा पाठ किया जाता है और परंपरा अनुसार बारातनिकाली जाती है, लेकिन सर्वाधिक और सबसे अलग माहौल अगर कहीं देखने मिलताहै तो वह है भोले बाबा की नगरी काशी में, यहां शिव पार्वती के विवाह कीतैयारियों का अनोखा ही नजारा देखने मिलता है।

दूल्हा बनने से पहले पंचबदन स्वरुप पर हल्दी-तेल की रस्म होगी। परंपरागततरीके से होलियारे अंदाज में ढोल-नगाड़े बजाए जाएंगे। मंदिर परिसर की सजावट भी बेहद लाजवाब होती है। इसे जनवासा का स्वरुप दिया जाता है। जहां बारात ठहरती है। बैलगाड़ी पर बाबा विराजेंगे और साधु संतों सहित औघड़,मदारी भी बारात का हिस्सा बनते हैं। इसे लेकर मान्यता है कि अदृश्य रुप में भूत-प्रेत एवं देवता भी बाबा की नगरी में इस बारात का हिस्सा बननेआते हैं।
बाबा भी महाशिवरात्रि पर भक्तों को विशेष दर्शन देते हैं और मंगला आरतीसे इस दिन कपाट भक्तों के लिए खोल दिए जाते हैं, जो रातभर खुले रहते हैं।देश के विभिन्न कोनों से ही नहीं, विदेशों से भी भक्त बाबा के दर्शनों केलिए और देश सबसे अलग व अनोखी बारात देखने के लिए यहां आते हैं। भक्तों केलिए बाबा के कपाट 44 घंटे तक खुलते हैं, जिसका नजारा बेहद अलौकिक होताहै।
चारों प्रहर की आरती में हजारों भक्त जुटते हैं। काशी का नजारामहाशिवरात्रि पर पूरा बदला हुआ नजर आता है। आम दिनों से अलग इस दिन शयनआरती नही होती, इसके स्थान पर सुंदर स्वरुप में बाबा महादेव और देवीपार्वती के विवाह की रस्में होती हैं। जिसे देखने बड़ी संख्या में लोगजुटते हैं। हर ओर बाबा बम भोले के जयकारे और मंत्रोच्चार सुनाई देता है। प्राचीन नगरी प्राचीन परंपराओं के साथ बाबा भोलेनाथ के जयकारों से गूंज उठती है।
कहा जाता है कि महाशिवरात्रि पर बाबा की बारात में शामिल होने के लिए हरघर से कोई न कोई अवश्य ही आता है। क्योंकि ऐसी मान्यता है कि बाबाभोलेनाथ यहां साक्षात रुप में निवास करते हैं, वहीं माता पार्वतीअन्नपूर्णा के रुप में सदा यहां विराजमान रहती हैं, जिसकी वजह से ही कभीकोई काशी में भूखा नही सोता। शिवरात्रि के अवसर पर विशेष भंडारों काआयोजन होता है। सिंदूर और रंग उड़ाते बड़े-बड़े नगाड़े बजाते हुए जब भक्तबाबा की बारात निकालते हैं तो यहां दृश्य नयनाभिरामी होता है, जो सिर्फयहीं देखने मिलता है। कहा जाता है यह परंपरा युगों पुरानी है जिसे कभीकाशी में निवास करने वाले राजा महाराजा भी निभाया करते थे।

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