कोरोना के बाद अब कोविड अस्पतालों में भी होगा ब्लैक फंगस का इलाज

कोरोना के बाद अब कोविड अस्पतालों में भी होगा ब्लैक फंगस का इलाज

हिमालयन हॉस्पिटल जॉलीग्रांट के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ.एसएल जेठानी ने बताया कि इसका इलाज मुख्यतः तीन भागों में किया जाता है। सर्वप्रथम मरीज की बीमारी निश्चित होने पर मरीज के शुगर का कंट्रोल किया जाता है। मरीज को एंटीफंगल दवा दी जाती है एवं इसके साथ ही मरीज का ऑपरेशन भी किया जाता है। हर मरीज के इलाज में इन तीनों चीजों का समन्वय करना अतिआवश्यक है, तभी मरीज को इस बिमारी से निजात दिलाई जा सकती है। पहला चरण में कोविड-19 बीमारी में यह म्यूकरमाइकोसिस मुख्यतः डायबिटीज के मरीजों को हो रहा है। जिसके लिए शुगर के सभी मरीजों का शुगर को नियंत्रित करना अतिआवश्यक है, जोकि मेडिसिन विशेषज्ञ/ एंडोक्रिनोलॉजिस्ट की देख-रेख में किया जाता है।

राज्य में कोरोना के इलाज के लिए घोषित किए गए 12 डेडिकेटेड कोविड अस्पतालों में अब ब्लैक फंगस के मरीजों का इलाज भी होगा। इस बीमारी के मरीज बढ़ने के बाद सरकार ने यह निर्णय लिया है। मुख्य सचिव ओम प्रकाश की ओर से इसके आदेश किए गए हैं। राज्य में ब्लैक फंगस के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं और सोमवार शाम तक राज्य में 118 मरीजों में इस बीमारी की पुष्टि हो चुकी थी। एम्स ऋषिकेश के अलावा कई अन्य अस्पतालों में लगातार इस बीमारी के मरीज मिल रहे हैं। ऐसे में अब सरकार ने कोरोना के लिए चिह्नित किए गए सभी अस्पतालों में इस बीमारी का इलाज करने का फैसला लिया है। सचिव स्वास्थ्य डॉ पंकज पांडेय ने बताया कि एम्स, दून, हल्द्वानी, श्रीनगर सहित कोविड के लिए चिह्नित सभी 12 बड़े अस्पतालों में इस बीमारी का इलाज किया जाएगा। डॉ पांडेय ने बताया कि एम्स ऋषिकेश में उत्तराखंड के अलावा यूपी, पंजाब और हरियाणा के मरीजों का भी इलाज किया जा रहा है।

दूसरा चरण में उपचार का दूसरा भाग एंटीफंगल दवा है जिसमें मुख्यतः एमफोरटेरिसिन-बी इंजेक्शन सामान्यतः तीन हफ्ते तक दिए जाते हैं। यह दवा मरीज के गुर्दे पर दुष्प्रभाव डालती है। इसके लिए मरीज का अस्पताल में समय-समय पर गुर्दे से संबंधित जांचें भी की जाती हैं। जबकि बीमारी के उपचार का तीसरा एवं अतिआवश्यक चरण ऑपरेशन है। ऑपरेशन में मरीज के काले पड़े अंग को सर्जरी कर निकाल दिया जाता है। समय पर उचित उपचार न मिलने से मरीजों की मृत्यु की संभावना बढ़ जाती है।

मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ.एसएल जेठानी ने बताया कि ऊपर बताए गए (ब्लैक फंगस से संबंधित) इस तरह के कोई भी लक्षण आने पर मरीज तुरंत हॉस्पिटल जाकर अपनी जांच करवाए। इसमें डॉक्टर नाक की दूरबीन विधि से जांच करते हैं। नाक से सड़ा हुआ काला पदार्थ का हिस्सा जांच के लिए भेजा जाता है। करीब 4 से 6 घंटे में इसकी जांच हो जाती है। अगर जांच में ब्लैक फंगस की पुष्टि होती है तो इसके बाद यह जानने के लिए कि यह बीमारी मरीज की आखं एवं दिमाग में तो नहीं फैल गई है। जरुरत के मुताबिक मरीज का सीटी स्कैन या एमआरआई करवाया जाता है। मरीज की बिमारी का पता चलने के बाद उसका तुरंत उपचार शुरू कर दिया जाता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *